ऑपरेशन सिंदूर की गूंज के बाद ISI की साजिश नाकाम, पाकिस्तान में सक्रिय भारतीय सिम से जासूसी रैकेट का खुलासा

Operation Sindoor: भारत की खुफिया एजेंसियों ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) से जुड़े एक जासूसी मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है। इस ऑपरेशन में नेपाल के एक नागरिक प्रभात कुमार चौरसिया को गिरफ्तार किया गया, जिसके माध्यम से पाकिस्तान में 11 भारतीय सिम कार्ड सक्रिय पाए गए। ये सिम कार्ड पाकिस्तानी एजेंट्स द्वारा भारतीय सेना की संवेदनशील जानकारियां चुराने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे। यह खुलासा 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद बढ़ी निगरानी के बाद हुआ है।
कैसे हुआ जासूसी नेटवर्क का भंडाफोड़?
मालूम हो कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियां हाई अलर्ट पर थीं। मई से जून 2025 तक 'ऑपरेशन घोस्ट सिम' जैसी गुप्त मोहिमों के तहत देशभर में जासूसी गतिविधियों पर नजर रखी जा रही थी। इसी क्रम में दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल को नेपाल के नागरिक प्रभात कुमार चौरसिया के बारे में जानकारी मिली। चौरसिया को गिरफ्तार करने पर पता चला कि वह भारतीय सिम कार्डों को पाकिस्तान भेज रहा था।
पूछताछ में चौरसिया ने कबूल किया कि वह आईएसआई के निर्देश पर काम कर रहा था। जांच में 11 ऐसे सिम कार्ड सक्रिय पाए गए, जो पाकिस्तान में इस्तेमाल हो रहे थे। जानकारी के अनुसार, ये सिम कार्ड पाकिस्तानी एजेंट्स द्वारा व्हाट्सएप अकाउंट्स बनाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे। इन नंबरों से वे खुद को भारतीय नागरिक दिखाकर भारतीय सेना की गतिविधियों, ट्रेनों के आवागमन और अन्य संवेदनशील जानकारियां इकट्ठा कर रहे थे।
मामूली शख्स था प्रभात कुमार चौरसिया
आरोपी प्रभात कुमार चौरसिया का जन्म 1982 में नेपाल में हुआ। जिसकी शुरुआती पढ़ाई नेपाल और बिहार के मोतिहारी से हुई। इसके बाद उसने फार्मा सेक्टर में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव और एरिया मैनेजर की नौकरी की। साल 2017 में उसने काठमांडू में लॉजिस्टिक्स कंपनी शुरू की, लेकिन घाटे में डूबने के बाद विदेश जाने की लालच में ISI के संपर्क में आ गया। वहीं, अब स्पेशल सेल ने उसके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 61(2)/152 के तहत मामला दर्ज किया है।
बताते चले भारतीय सिम कार्डों का पाकिस्तान में सक्रिय होना एक गंभीर सुरक्षा चिंता है। ये कार्ड लोकल नंबरों की तरह दिखते थे, जिससे एजेंट्स बिना संदेह के भारतीय अधिकारियों या सैनिकों से संपर्क कर पाते। जांच एजेंसियों के अनुसार, ये एजेंट्स हनी ट्रैप तकनीक का भी इस्तेमाल कर रहे थे। भारतीय सिम कार्डों के ओटीपी (वन-टाइम पासवर्ड) पाकिस्तान भेजे जाते थे, जिससे वहां के हैंडलर्स ऐप्स एक्टिवेट कर लेते। पैसे के लेन-देन पेमेंट गेटवे के जरिए इन नंबरों पर होते थे, जिससे ट्रैकिंग आसान हो गई। कुल मिलाकर, 11 दिनों में 7 से अधिक जासूस पकड़े गए, और दर्जनों संदिग्धों की पहचान हुई।
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