सात पवित्र स्थल, एक ही शक्ति...इस मुस्लिम देश में आज भी जीवित है देवी दुर्गा के 7 तीर्थों का अस्तित्व, सप्तशती में भी मिलेगा जिक्र

Bangladesh Seven Shakti Peeths: “सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते … भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते।” यह श्लोक श्रीदुर्गा सप्तशती का एक ऐसा स्तोत्र है जिसमें देवी दुर्गा को सम्पूर्ण जगत की स्वामिनी और सभी शक्ति-स्वरूपों की प्रतिनिधि बताया गया है। यह वर्णन दर्शाता है कि कैसे जगत का हर अंश और शक्ति देवी के अंदर निहित है। भारत में शक्तिपीठों की मान्यता इसी दर्शन से जुड़ी है कि देवी सती के शरीर के अंग विभिन्न स्थानों पर गिरे और उन्हें शक्तिपीठ के रूप में पूजनीय स्थल माना गया।
बांग्लादेश में सात शक्तिपीठों की महिमा
बांग्लादेश में भी शाक्त परंपरा का गहरा प्रभाव है और देश में सात प्रमुख शक्तिपीठ हैं जहां देवी शक्ति की उपासना प्राचीन काल से होती आ रही है। इनमें शामिल हैं: जेसोरेश्वरी शक्तिपीठ (ईश्वरीपुर, सतखिरा) जहां देवी सती की हथेली गिरी मानी जाती है, सुगंधा शक्तिपीठ (शिकारपुर) जहां उनकी नाक का हिस्सा गिरने की मान्यता है, भवानी शक्तिपीठ (चित्तगांव, सीताकुंड), जयंती शक्तिपीठ (सिलहट), महालक्ष्मी शक्तिपीठ (सिलहट के गोटाटिकर क्षेत्र में), श्रावनी (स्रवानी) शक्तिपीठ और अपर्णा शक्तिपीठ (शेरपुर जिले में करतोया नदी के किनारे)।
तीर्थस्थलों की स्थापनाएं, कथाएं एवं आध्यात्मिक प्रभाव
प्रत्येक शक्तिपीठ की स्थापना के पीछे पौराणिक कथाएं हैं — जैसे कि जेसोरेश्वरी में एक महाराजा प्रतापादित्य के सेनापति को झाड़ियों में हाथ की आकार की चमकदार रोशनी मिली थी, जिसे उन्होंने देवी की मौजूदगी मान लिया और मंदिर की स्थापना की गई। सुगंधा शक्तिपीठ सुनंदा/उग्रतारा को समर्पित है, महालक्ष्मी शक्तिपीठ में देवी के गर्दन के हिस्से का अंग गिरने की मान्यता है, और श्रावनी शक्तिपीठ देवी सती की रीढ़ की हड्डी से जुड़ा बताया जाता है। ये तीर्थ स्थल ना केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र हैं बल्कि हिन्दू संस्कृति की विविधता और देवी शक्ति की सार्वभौमिकता का प्रतीक भी हैं।
समय और संरक्षण की चुनौतियां
इन शक्तिपीठों का सौन्दर्यीकरण और संरक्षण अभी भी कई चुनौतियों के बीच है। उदाहरण के लिए, जेसोरेश्वरी शक्तिपीठ को 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सोने का मुकुट भेंट किया गया था, जो बाद में हिंदू-विरोधी हिंसा के दौरान चोरी हो गया। इसके अलावा, कई शक्तिपीठों को ऐतिहासिक समय से गुजरने के बाद संरचनात्मक बदलाव, स्थानीय धार्मिक संघर्षों और सैकड़ों वर्षों के उपेक्षा के कारण मरम्मत की आवश्यकता है। ये स्थान भक्तों को देवी की दिव्य स्त्री शक्ति से जुड़ने का अवसर देते हैं और इनकी भावनात्मक और पौराणिक महत्ता आज भी जीवंत है।
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