प्रकृति का प्रकोप या इंसान की गलती? क्या है दार्जिलिंग की तबाही का राज

Darjeeling Landslide:दार्जिलिंग, जिसे 'हिल्स की क्वीन' कहा जाता है, आज एक दर्दनाक त्रासदी के साये में सिसक रही है। 05 अक्टूबर 2025 को भारी बारिश ने मिरिक और दार्जिलिंग पहाड़ियों में भूस्खलन को जन्म दिया, जिसमें कम से कम 23 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। मृतकों में बच्चे भी शामिल हैं। इस त्रासदी की वजह से घर टूटे, सड़कें कट गईं, गांव अलग-थलग पड़ गए और सैकड़ों पर्यटक फंस गए। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) और स्थानीय प्रशासन राहत कार्य में जुटे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह 'प्राकृतिक आपदा' नहीं, बल्कि 'मानव-निर्मित विपदा' है। क्योंकि बेतरतीब विकास, जंगलों की बेरहमी से कटाई और शहरों का अंधाधुंध विस्तार, क्या इंसान ने ही अपने हाथों से इस हिमालयी मोती को तबाह कर दिया है?
विकास के नाम पर सिर्फ तबाही
पर्यावरणविदों का मानना है कि दार्जिलिंग की इस तबाही का सबसे बड़ा दोषी बेतरतीब शहरीकरण है। दार्जिलिंग नगर निगम में 70-80 प्रतिशत भूमि आवासीय उपयोग के लिए आवंटित कर दी गई है, जो पहाड़ी इलाके के लिए असहनीय है। ऊंची इमारतें, होटल और सड़कें ढलानों पर बिना किसी भू-गर्भीय जांच के उग आई हैं। पर्यावरणविद् सुजीत राहा, नॉर्थ बंगाल साइंस सेंटर के सदस्य, कहते हैं 'पहाड़ दशकों की लापरवाही की कीमत चुका रहे हैं। जंगलों की कटाई, बिना योजना के सड़कें और लापरवाह निर्माण ने इलाके को अस्थिर बना दिया। बारिश तो सिर्फ ट्रिगर है, असली वजह हमारी पर्वतों के प्रति असंवेदनशीलता है।"
जंगलों की कटाई है असली वजह
इस तबाही की जड़ जंगलों की कटाई है। चाय बागानों, पर्यटन और आबादी के दबाव में हिमालय के जंगल तेजी से सिकुड़ रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार, दार्जिलिंग हिमालय में मिट्टी कटाव जंगलों की कटाई और जड़ वाली फसलों (जैसे अदरक, आलू) की खेती से बढ़ा है। इससे प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली पर भी असर पड़ा, जिससे झरने सूख रहे हैं, नदियां बाढ़ की शिकार हो रही हैं।
1991 के 'स्टेट ऑफ एनवायरनमेंट रिपोर्ट' में तीस्ता घाटी में 1902-1978 के बीच नौ क्लाउडबर्स्ट दर्ज किए गए थे; आज जलवायु परिवर्तन से यह संख्या बढ़ रही है। पर्यावरण विद्वान विमल खावास इसे 'दशकों पुरानी पैटर्न' बताते हैं, जहां हर आपदा वही कमजोरियां उजागर करती है: अनियोजित विस्तार, वनों का विनाश और अपर्याप्त जल निकासी।
पर्यटन उद्योग भी है जिम्मेदार
इस त्रासदी में पर्यटन उद्योग भी योगदान दे रहा है। दार्जिलिंग की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय पहचान पर्यटकों पर निर्भर है, लेकिन अनियंत्रित पर्यटन ने बुनियादी ढांचे पर दबाव डाला। होटल लॉबी के खिलाफ पर्यावरण कार्यकर्ता दावा लामा जैसे लोग अदालतों में लड़ रहे हैं, लेकिन सड़कें, हाई-राइज और वाहन ट्रैफिक ने हिमालय को और कमजोर कर दिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, दार्जिलिंग सीस्मिक जोन 4 में है, जहां भूकंप के दौरान ऊपरी निर्माण निचले इलाकों पर गिर सकता है।
2025 है त्रासदी का नया चेहरा
वहीं, अब वर्तमान समय में 05 अक्टूबर को हुई बारिश ने सर्साली, जसबीरगांव, मिरिक बस्ती, धार गांव (मेची), नागराकाटा और मिरिक झील क्षेत्र को तबाह कर दिया। सिलीगुड़ी को मिरिक-दार्जिलिंग से जोड़ने वाला लोहे का पुल क्षतिग्रस्त हो गया, जिससे पूरे क्षेत्र की कनेक्टिविटी टूट गई। राज्य सरकार ने सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी में इमरजेंसी कंट्रोल रूम स्थापित किए हैं, लेकिन मृतकों की संख्या बढ़ने का डर है। पर्यटन व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुई - होटल खाली, चाय विक्रेता बेरोजगार, और स्थानीय अर्थव्यवस्था ठप। यह न केवल आर्थिक नुकसान है, बल्कि दार्जिलिंग की सांस्कृतिक धरोहर पर भी चोट है।
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