Monday Special: आखिर क्यों होता है शिव जी के मस्तक पर चंद्रमा, जानिए इसका रहस्य

Monday Special: सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ का दिन माना जाता है। भोलेनाथ को देवों के देव महादेव भी कहते हैं। सभी देवनाओं में भोलेनाथ सबसे जल्दी अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं इसलिए इन्हें भोलेनाथ कहते हैं। आज हम आपको बताएंगे भगवान शिव के माथे पर चंद्रमा क्यों विराजते हैं।
इसका उत्तर शिव पुराण में बताया गया है। शिव पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब विष निकला तो सृष्टि की रक्षा हो इसके लिए विष का सेवन भगवान शिव ने किया। यह विष उनके कंठ में जमा हो गया। जिसकी वजह से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है।
अन्य देवताओं ने की प्रार्थना
कथा के अनुसार विष के प्रभाव से शंकर का शरीर बहुत गर्म होने लगा था। तब चंद्र सहित अन्य देवताओं ने प्रार्थना की, कि वह अपने शीश पर चंद्र को धारण करें ताकि उनके शरीर में शीतलता बनी रहे। सफेद चंद्रमा को बहुत शीतल माना जाता है जो पूरी सृष्टि को शीतलता प्रदान करते हैं। देवताओं के आग्रह पर शिवजी ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया था।
कष्टों से मिली मुक्ति
वहीं एक दूसरी कथा के अनुसार, चंद्रमा की पत्नी 27नक्षत्र कन्याएं हैं। इनमें रोहिणी उनके सबसे नजदीक थीं। इससे दुखी चंद्रमा की बाकी पत्नियों ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से इसकी शिकायत कर दी। तब दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रस्त होने का श्राप दिया था। इसकी वजह से चंद्रमा की कलाएं क्षीण होती गईं। चंद्रमा को बचाने के लिए नारदजी ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा था। चंद्रमा ने अपनी भक्ति से शिवजी को प्रसन्न जल्द प्रसन्न कर लिया। शिव की कृपा से चंद्रमा पूर्णमासी पर अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए और उन्हें अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिली। तब चंद्रमा के अनुरोध करने पर शिवजी ने उन्हें अपने शीश पर धारण किया।
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