बांग्लादेश में शरिया की मांग, क्या तालिबानी मॉडल की ओर बढ़ रहा है देश?

Bangladesh News: हाल के महीनों में बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों द्वारा शरिया कानून लागू करने की मांग ने देशभर में एक नई बहस को जन्म दिया है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि कट्टरपंथी संगठन जैसे हिफाजत-ए-इस्लाम और जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश को इस्लामिक देश घोषित करने और शरिया-आधारित शासन प्रणाली लागू करने की वकालत कर रहे हैं। इसके अलावा तालिबानी मॉडल लाने की भी बात की जा रही है।
क्या है पूरा मामला?
मालूम हो कि बांग्लादेश साल 1971में एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ। लेकिन पिछले कुछ सालों में कट्टरपंथी विचारधाराओं के बढ़ते प्रभाव का सामना कर रहा है। सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि हिफाजत-ए-इस्लाम के उपाध्यक्ष मुहीउद्दीन रब्बानी और जमात-चर मोंई के प्रमुख पिर मुफ्ती सैयद मुहम्मद फैज़ुल करीम जैसे नेताओं ने शरिया कानून लागू करने की बात कही है। इनमें से कुछ बयानों में मूर्तियों को तोड़ने, कुरान को संविधान बनाने और गैर-मुस्लिमों पर सख्ती जैसे तालिबानी शैली के कदमों की वकालत की गई है।
हालांकि, देश में हाल के राजनीतिक उथल-पुथल और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों की सक्रियता ने कट्टरपंथी ताकतों को बल दिया है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ये संगठन सामाजिक और धार्मिक मुद्दों का उपयोग करके जनता का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
शरिया कानून की मांग कोई नई बात नहीं है। हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे संगठन पहले भी महिलाओं की शिक्षा, ड्रेस कोड और सांस्कृतिक गतिविधियों पर सख्त नियम लागू करने की मांग कर चुके हैं। लेकिन तालिबानी मॉडल की बात नया और चिंताजनक आयाम है, क्योंकि यह बांग्लादेश के संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
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