Women Farmer's Day: महिलाओं ने बदली कृषि क्षेत्र की तस्वीर, लेकिन उनके योगदान को क्यों किया जा रहा अनदेखा?

Women Farmer's Day: 15अक्टूबर को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जाता है, जिसे भारत में महिला किसान दिवस के रूप में जाना जाता है। यह दिन ग्रामीण महिलाओं की कृषि, अर्थव्यवस्था और समाज में महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करने के लिए समर्पित है। आज के समय में जब हम महिलाओं के कृषि क्षेत्र में योगदान की बात करते है तो पाते है कि इस क्षेत्र में महिलाओं का योगदान पहले से कहीं ज्यादा बढ़ चुका है। लेकिन फिर भी, उन्हें उचित पहचान, अधिकार और संसाधन क्यों नहीं मिल पाते।
कृषि में महिलाओं का बढ़ता योगदान
कृषि वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, और महिलाएं इसमें एक प्रमुख स्तंभ हैं। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, विकासशील देशों में कृषि कार्यबल का लगभग 43%हिस्सा महिलाओं का है। भारत में यह आंकड़ा और भी ऊंचा है। 2025के ताजा सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय कृषि में महिलाओं की भागीदारी 75%से अधिक है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां वे बीज बोने, फसल काटने, सिंचाई और पशुपालन जैसे कार्यों में मुख्य भूमिका निभाती हैं। पिछले कुछ सालों में, जलवायु परिवर्तन, पुरुषों का शहरों की ओर पलायन और तकनीकी प्रगति के कारण महिलाओं की भूमिका और मजबूत हुई है।
उदाहरण के लिए, 2024-2025के दौरान, भारत सरकार की 'महिला किसान सशक्तिकरण योजना' के तहत लाखों महिलाओं को प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान किए गए, जिससे उनकी उत्पादकता में 20-30%की वृद्धि हुई। इसके अलावा एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि यदि महिलाओं को पुरुषों के समान संसाधन मिलें, तो वैश्विक कृषि उत्पादन में 2.5-4%की वृद्धि हो सकती है, जो करोड़ों लोगों की भुखमरी को कम कर सकता है। भारत में, महिलाएं न केवल पारंपरिक खेती में सक्रिय हैं, बल्कि जैविक खेती, ड्रोन तकनीक और बाजार लिंकेज में भी योगदान दे रही हैं। 2025में, महिला-केंद्रित सहकारी समितियों की संख्या में 15%की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो उनकी आर्थिक स्वतंत्रता को दर्शाती है।
फिर भी क्यों नहीं मिलती पहचान?
महिलाओं के योगदान के बावजूद, उन्हें पहचान क्यों नहीं मिलती? हाल के अध्ययनों से पता चला है कि इसका मुख्य कारण लैंगिक असमानता है, जो सामाजिक, आर्थिक और कानूनी स्तर पर व्याप्त है। इसके अलावा भूमि स्वामित्व भी बड़ा मुद्दा है। भारत में, केवल 13%कृषि भूमि महिलाओं के नाम पर है, जबकि वे अधिकांश कार्य करती हैं। इससे उन्हें ऋण, सब्सिडी और सरकारी योजनाओं तक पहुंच में बाधा आती है। पुरुष-प्रधान समाज में, महिलाओं को 'किसान' के रूप में नहीं, बल्कि 'सहायक' के रूप में देखा जाता है, जिससे उनकी भूमिका को कम आंका जाता है। संसाधनों की कमी के कारण भी उनकी पहचान में बाधा का काम करता है।
2025 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण महिलाओं को कृषि उपकरणों और प्रशिक्षण तक पहुंच में पुरुषों की तुलना में 50% कम अवसर मिलते हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जैसे सूखा और बाढ़, महिलाओं पर अधिक बोझ डालते हैं, लेकिन नीतियां उन्हें केंद्र में नहीं रखतीं। इसके अलावा डिजिटल विभाजन एक बड़ी समस्या है; केवल 30% ग्रामीण महिलाएं इंटरनेट का उपयोग कर पाती हैं, जिससे वे बाजार जानकारी और नई तकनीकों से वंचित रह जाती हैं।सामाजिक पूर्वाग्रह भी एक बड़ा कारक है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाओं की सफलता को 'परिवार की मदद' से जोड़ा जाता है, जबकि असफलता को उनकी 'क्षमता की कमी' से।
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