ट्रेनों में जगह नहीं, स्टेशन की कतारें सड़कों तक फैली; टिकट होने के बावजूद 12-18 घंटे के इंतजार से यात्रियों की बढ़ी मुश्किलें

Train Ticket Issues On Diwali: दीपावली की रोशनी और छठ पूजा की तैयारियों के बीच लाखों प्रवासी मजदूर उदास नजर आए। गुजरात के सूरत में उधना रेलवे स्टेशन पर शनिवार शाम हजारों लोग बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड लौटने की आस में सड़कों पर लेटे नजर आए। सभी लोग घर जाने की गुहार लगा रहे है। टिकट होने के बावजूद 12 से 18 घंटे का इंतजार, भूख-प्यास की मार और ठंडी रातों में खुले आसमान तले गुजारा – ये सिर्फ एक स्टेशन की कहानी नहीं, बल्कि पूरे देश की रेल यात्रा की हकीकत बन चुकी है।
सूरत के उधना स्टेशन की कतारें सड़कों तक फैली
सूरत में त्योहारों के मौसम में हालात चरम पर पहुंच गए। उधना रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 6 से शुरू होकर करीब दो किलोमीटर लंबी लाइनें लिम्बायत इलाके की गलियों तक फैल गईं। बूढ़े, महिलाएं, छोटे बच्चे और युवा सभी धूप, भूख और थकान की परवाह किए बिना खड़े थे। एक यात्री ने बताया 'शाम सात बजे से प्रयागराज जाने वाली ट्रेन का इंतजार कर रहा हूं, लेकिन नंबर ही नहीं आया। बच्चे रो रहे हैं, लेकिन क्या करें?' रात के अंधेरे में सड़कों पर चादरें बिछाकर सोते लोग, ठंडी हवा में सिहरते हुए – ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।
मालूम हो कि रेलवे ने स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं, लेकिन वे भी मिनटों में भर जाती हैं। जनरल बोगी में तो धक्का-मुक्की का आलम है, जहां लोग दरवाजों पर लटककर सफर करने को मजबूर हैं। सूरत से बिहार-यूपी जाने वाली ट्रेनों में आरक्षण के बावजूद सीट न मिलने की शिकायतें आम हैं। एक प्रवासी ने कहा 'हम साल भर कमाते हैं ताकि त्योहार पर परिवार से मिल सकें, लेकिन ये इंतजार सब खराब कर रहा है।'
पूरे देश में यात्रियां परेशान
ये समस्या सूरत तक सीमित नहीं। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से लेकर मुंबई, जबलपुर, लखनऊ के चारबाग और चेन्नई तक सभी प्रमुख स्टेशनों पर यही हाल है। दिल्ली में यात्रियों ने प्लेटफॉर्म पर ही डेरा डाल लिया है, जहां एसी कोच से लेकर शौचालय तक हर जगह भीड़ है। एक वीडियो में दिखा कि आरक्षित कोच में अनारक्षित यात्री घुस आए, जिससे एक महिला यात्री नेहा को पूरी रात डर के साये में गुजारनी पड़ी।
जबलपुर स्टेशन पर तो एक और शर्मनाक घटना घटी, जहां एक यात्री को समोसे के पैसे न चुका पाने पर ट्रेन छूट गई और दुकानदार ने उसकी घड़ी तक हड़प ली। मुंबई से बिहार जाने वालों को चार गुना किराया देकर प्राइवेट वाहनों पर निर्भर होना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर यूजर्स लिख रहे हैं '10 साल बीत गए, रेल व्यवस्था वही की वही। बुलेट ट्रेन के वादे कहां गए?'
रेलवे के आंकड़ों के मुताबिक, त्योहारों के लिए दर्जनों फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनें चलाई गई हैं, लेकिन यात्रियों की संख्या अनुमान से कहीं ज्यादा है। कोहरे या मेंटेनेंस जैसी पुरानी समस्याओं के अलावा, प्रवासियों की होड़ ने ट्रेनें घंटों लेट कर दी हैं। बसें भी कम पड़ रही हैं, और हवाई यात्रा आम आदमी की पहुंच से बाहर है।
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