Monday Special: महादेव को क्यों प्रिय है भस्म, इसके पीछे छुपा है गहरा रहस्य

Monday Special: हफ्ते के सात दिनों में सोमवार भगवान शिव का दिन माना जाता इस दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना करने को विशेष महत्व माना गया है। भगवान शिव के बारे में कहते हैं कि भगवान शिव का न आदि है न अंत है। भगवान शिव अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहते हैं। लेकिन जहां अन्य देवी देवता आभूषणों से सजे होते हैं वहीं हम देखते हैं कि भगवान शिव का आभूषण भस्म होता है। आखिर भस्म भगवान शिव को इतना पसंद क्यों होता है? भगवान शिव का भस्म से संबंध क्या है ? इसके पीछे आखिर भोलेनाथ क्या संदेश देना चाहते हैं
हिंदू धर्म में भगवान के तीन रुप बताए गए हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश। ब्रह्माजी इस सृष्टि के रचयिता माने जाते हैं , विष्णुजी इस संसार को चलाने वाले यानि पालनहार तो वहीं महेश या यूं कह लें शिवजी संसार को नष्ट करने वाले , यानि कि जन्म के बाद अंत दिखाने वाले। ऐसा कहा जाता है कि वो श्मशान में बैठकर मृत्यु का इंतजार करते हैं। हिन्दू कथाओं के अनुसार कई जगह शिवजी को भस्म का प्रयोग करते हुए पाया गया है। ऐसा दावा भी किया जाता है कि वे शरीर पर भस्म लगाते थे। भस्म यानि कुछ जलाने के बाद बची हुई राख, लेकिन यह किसी धातु या लकड़ी को जलाकर बची हुई राख नहीं है। शिव जली हुई चिताओं के बाद बची हुई राख को अपने तन पर लगाते थे।
क्या संदेश देना चाहते हैं शिवजी
दरअसल, कहा जाता है कि शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं। उनके अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के बाद बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण नहीं बचा रह जाता। ना उसके दुख, ना सुख, ना कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई बचती है। इसलिए वह राख पवित्र है, उसमें किसी प्रकार का गुण-अवगुण नहीं है, ऐसी राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं।
इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है
पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता सति ने गुस्से में आकर खुद को आग के हवाले कर दिया था, उस दौरान महादेव उनका शव लेकर धरती से आकाश तक हर जगह घूमे थे। विष्णु जी से उनकी यह दशा देखी नहीं गई और उन्होंने माता सति के शव को छूकर भस्म में बदल दिया। अपने हाथों में भस्म देखकर शिव जी और परेशान हो गए और सति की याद में वो राख अपने शरीर पर लगा ली। वहीं धार्मिक ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत पर वास करते थे. वहां बहुत ठंड होती थी. ऐसे में खुद को सर्दी से बचाने के लिए वह शरीर पर भस्म लगाते थे.
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