“मैं 15 अगस्त पर खुश नहीं हो सकता”, आजादी के जश्न में आखिर क्यों शामिल नहीं हुए महात्मा गांधी

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साल 1954 में रिलीज हुई फिल्म जाग्रति का ये गाना हर किसी के मन में देशप्रेम की भावना भर देता है साथ ही देश की आजादी में महात्मा गांधी के योगदान को भी याद दिलाता है।महात्मा गांधी ने देश को स्वतंत्र कराने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया। लेकिन 14-15अगस्त, 1947की रात जब देश आजादी का जश्न मना रहा था, जब जवाहर लाल नेहरू आजाद भारत में पहला भाषण दे रहे थेउस दौरान महात्मा गांधी उस जश्न में शामिल होने से मना कर दिया था। आजादी की पहली सुबह भी जब हर किसी के आंखों में नई सुबह का उत्साह था। हर आंखें खुशी से झूम रहीं थीं उस दौरान महात्मा गांधी खुश नहीं थे। जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को पत्र भेजकर स्वाधीनता दिवस पर आशीर्वाद देने के लिए बुलाया था। वहीं इस पत्र का जवाब देते हुए गांधी जी ने कहा था कि जब देश में सांप्रदायिक दंगे हो रहे हों तो वे कैसे आजादी के जश्न में शामिल हो सकते हैं।
महात्मा गांधी ने कही थी ये बात
उस दौरान महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं 15अगस्त पर खुश नहीं हो सकता। मैं आपको धोखा नहीं देना चाहता, मगर इसके साथ ही मैं ये नहीं कहूंगा कि आप भी खुशी ना मनाएं। दुर्भाग्य से आज हमें जिस तरह आजादी मिली है, उसमें भारत-पाकिस्तान के बीच भविष्य के संघर्ष के बीज भी हैं। ऐसे मे हम दिए कैसे जला सकते हैं? मेरे लिए आजादी की घोषणा की तुलना में हिंदू-मुस्लिमों के बीच शांति अधिक महत्वपूर्ण है।
कलकत्ता में थे मौजूद
आजादी के दस्तावेजों में दावा किया गया है कि उस दौरान गांधीजी बंगाल में शांति लाने के लिए कलकत्ता में थे। वहां एक साल से अधिक समय से हिंदू व मुसलमानों में संघर्ष चल रहा था। महात्मां गांधी नोआखली जाने के लिए 9 अगस्त, 1947 को कलकत्ता पहुंचे थे। वहां वो मुसलमानो की बस्ती में स्थित हैदरी मंजिल में ठहरे और बंगाल में शांति लाने और खून खराबा रोकने के लिए भूख हड़ताल शुरू कर दी थी। उस दौरान राष्ट्र पिता महात्मा गांधी को बताया गया कि अगर वो कलकत्ता में शांति ला सकते हैं तो उस समय के पूरा बंगाल सामान्यता और सद्भाव में लौट आएगा।
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