Maharashtra Politics : शिवसेना के बाद अब NCP, चुनाव आयोग कैसे तय करता है पार्टी का असली मालिक कौन होगा?
Maharashtra Politics : कुछ महीनों पहले शिवसेना टूटी शिवसेना के टूटने के बाद चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना करार दिया था। और अब एनसीपी में फूट के बाद चुनाव आयोग ने अजित पवार गुट को असली एनसीपी करार दिया। ऐसे में सवाल है कि पार्टी टूटने के बाद कैसे तय होता है कि उसका असली मालिक कौन है, इस प्रक्रिया में किन बातों का ध्यान रखा जाता है।
चुनाव आयोग ऐसे तय करता है पार्टी
यह पहली बार नहीं है जब पार्टी टूटी और टूटने के बाद सवाल उठा कि उसका असली मालिक कौन होगा? सुप्रीम कोर्ट के वकील आशीष पांडे कहते हैं, इस सवाल का जवाब इलेक्शन सिम्बल (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर 1968 से मिलता है। इसका उद्देश्य संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव चिन्ह का वितरण, आरक्षण, और राजनीतिक दलों की मान्यता के मामलों को सुलझाना है। यह चुनाव आयोग को पार्टी प्रतीकों को पहचानने और आवंटित करने का अधिकार देता है।
उन्होंने कहा कि पार्टी के विघटन के मामलों में चुनाव आयोग गुटों और उनके समर्थकों की संख्या पर ध्यान देता है। सारा मामला बहुमत पर जाकर अटकता है। सरल भाषा में समझाएं तो, पार्टी के विघटन के बाद संगठन के सदस्यों और विधानसभा में पार्टी के सांसदों का बहुमत किस गुट के पास है। फैसला इस आधार पर किया जाता है। हालांकि, चुनाव आयोग कुछ अन्य कारकों को भी महत्व देता है। जैसे- पार्टी का संविधान क्या है, पार्टी की स्थापना के समय किसे बड़ा और जिम्मेदार पद (ऑफिस बियरर्स) मिला था।
किस तरह नई पार्टी बनाने को कहा जाता है?
चुनाव आयोग पहचान करता है कि पार्टी की सर्वोच्च कमेटी के सदस्य किस गुट का समर्थन कर रहे हैं। इसके अलावा, उस पार्टी के सांसदों और विधायकों के समर्थकों की संख्या किस गुट के पास अधिक है। जिस गुट को सबसे अधिक समर्थन मिलता है, उसे ही पार्टी का असली मालिक घोषित किया जाता है। उसी गुट को चुनाव चिन्ह दिया जाता है। योग्य गुट को पार्टी का मालिक घोषित करने और चुनाव चिन्ह देने के बाद दूसरे गुट से यह कहा जाता है कि वे अपनी अलग पॉलिटिकल पार्टी बनाएं। इस तरह उनसे नई पार्टी बनाने को कहा जाता है और नया चुनाव चिन्ह अलॉट किया जाता है।
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