बनारस की असली दीपावली हैं आस्था और प्रकाश का अद्भुत संगम, लाखों दीप से जगमगाएगा पूरा शहर
Banaras Dev Deepawali:दीपावली का त्योहार तो हम सबने मनाया, लेकिन बनारस में आज एक अलग ही रंग चढ़ा है। यहां की गलियां और घाट आज देव दीपावली के दीयों से जगमगा उठे हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर मनाया जाने वाला ये पर्व 'देवताओं की दीपावली' कहलाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की त्रिपुरासुर पर जीत के बाद सभी देवता गंगा के घाटों पर स्नान करने आते हैं। 15 दिनों पहले आई आम दीपावली के बाद आज बनारस में लाखों दीये जल रहे हैं, जो न सिर्फ आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि शहर की सांस्कृतिक धरोहर को भी रोशन कर रहे हैं।
क्यों मनाई जाती है देव दीपावली?
देव दीपावली की जड़ें पुराणों में हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक मास की पूर्णिमा को भगवान शिव ने तीनों लोकों को त्रस्त करने वाले राक्षस त्रिपुरासुर का संहार किया था। ये राक्षस तीन त्रिपुर नगरी में छिपा रहता था, जिसे शिव ने एक बाण से भस्म कर दिया। इस जीत पर सभी देवता आनंदित हो उठे और वे काशी (बनारस) के घाटों पर उतर आए। यहां गंगा स्नान कर उन्होंने दीप जलाए, जो अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक बने। इसी से 'त्रिपुरी पूर्णिमा' या 'त्रिपुरारी पूर्णिमा' नाम पड़ा।
2025 में ये पर्व 5 नवंबर को मनाया जा रहा है, जब पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर रात 10:36 बजे से शुरू होकर 5 नवंबर शाम 6:48 बजे तक चलेगी। प्रदोषकाल मुहूर्त शाम 5:15 से 7:50 बजे तक है, जिसमें दीप दान का विशेष महत्व है। बनारस में ये पर्व इसलिए 'असली दीपावली' कहलाता है क्योंकि यहां देवता खुद आते हैं, जबकि आम दीपावली में राम की वापसी की खुशी मनाई जाती है। ये त्योहार न सिर्फ शिव को समर्पित है, बल्कि कार्तिकेय के जन्म और विष्णु के मत्स्य अवतार से भी जुड़ा है। आस्था के इस संगम में लोग मानते हैं कि गंगा स्नान से पाप धुल जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
घाटों पर लाखों दीये, श्रद्धालुओं का सैलाब
बनारस की देव दीपावली की असली रौनक घाटों पर दिखती है। 84 घाटों पर लाखों मिट्टी के दीये सजाए जाते हैं, जो गंगा की लहरों पर तैरते हुए शहर को स्वर्ग जैसा बना देते हैं। आज शाम दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती का नजारा देखने लायक होगा। साथ ही, 21 ब्राह्मण पुजारी और 24 महिलाएं शंख, मंत्र और 'हर हर महादेव' के जयकारों के बीच आरती करेंगी। रविदास घाट से राजघाट तक फैले इस इलाके में रंगोली, फूलों की मंडप और लेजर शो से माहौल और भव्य हो जाता है।
परंपरा के मुताबिक, शाम को 'दीप दान' किया जाता है – दीये गंगा में प्रवाहित कर देवी गंगा का सम्मान। घरों के दरवाजों पर दीये जलाकर रंगोली बनाई जाती है, पटाखे फोड़े जाते हैं और देव वरनों की शोभायात्राएं निकाली जाती हैं। काशी विश्वनाथ और संकट मोचन जैसे मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है। इस बार देव दीपावली में पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ी है।
Leave a Reply