Same Sex Marriage: सेम सेक्स मैरेज पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, CJI बोले- हर किसी को साथी चुनने का मौलिक अधिकार

Same Sex Marriege: सुप्रीम कोर्ट समलैगिंग विवाह को लेकर फैसला सुना रहा है। इस मुद्दे पर 18 समलैंगिक जोड़ों के द्वारा याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं नें मांग की थी कि इस तरह की शादी को कानूनी मान्यता दी जाए। इस फैसले की सुनवाई सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच कर रही थी।
डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह खुद को किस तरह से पहचानता है। संविधान के मुताबिक इस अदालत की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा इस मामले में कुछ चार फैसले हैं। कुछ सहमति के हैं और कुछ असहमति के। उन्होंने कहा, अदालत कानून नही बना सकता। लेकिन कानून की व्याख्या कर सकता है।
डीवाई चंद्रचूड़ ने आगे कहा, जीवन साथी चुनना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। साथी चुनने और उस साथी के साथ जीवन जीने की क्षमता जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आती है। जीवन के अधिकार के अंतर्गत जीवन साथी चुनने का अधिकार है। एलजीबीटी समुदाय समेत सभी व्यक्तियों को साथी चुनने का अधिकार है।
‘विरोध के बावजूद विवाहों के रूप में परिवर्तन आया है’
सीजेआई ने कहा कि ये कहना सही नहीं होगा कि सेम सेक्स सिर्फ अर्बन तक ही सीमित नहीं है। ऐसा नहीं है कि ये केवल अर्बन एलीट तक सीमित है। यह कोई अंग्रेजी बोलने वाले सफेदपोश आदमी नहीं है, जो समलैंगिक होने का दावा कर सकते हैं। बल्कि गांव में कृषि कार्य में लगी एक महिला भी समलैंगिक होने का दावा कर सकती है। शहरों में रहने वाले सभी लोगों को कुलीन नहीं कहा जा सकता।चंद्रचूड़ ने कहा, विवाह का रूप बदल गया है। यह चर्चा दर्शाती है कि विवाह का रूप स्थिर नहीं है। सती प्रथा से लेकर बाल विवाह और अंतरजातीय विवाह तक विवाह का रूप बदला है। विरोध के बावजूद विवाहों के रूप में परिवर्तन आया है।
समलैंगिक जोड़ों के साथ होता है भेदभाव
सीजेआई ने कहा, किसी व्यक्ति को शादी करने का अधिकार उसको भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(1)(e) देता है। सीजेआई ने आगे कहा, यह सही है कि कुछ मामलों में साथी चुनने के अधिकार पर कानूनी रोक है। जैसे प्रतिबंधित संबंधों में शादी, लेकिन समलैंगिक तबके को भी अपने साथी के साथ रहने का अधिकार उसी तरह है, जैसे दूसरों को है।अविवाहित जोड़े को बच्चा गोद लेने से रोकने वाले प्रावधान गलत हैं। इससे समलैंगिक जोडों के साथ भी भेदभाव होता है। इस तरह का प्रावधान अनुच्छेद 15 (समानता) का हनन है।
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