Exit Poll: क्या राजनीतिक दल नतीजों से पहले मिठाइयां बांटने की करेंगे हिम्मत? जानें पहले के कुछ खट्टे मीठे अनुभव
Exit Poll: राजनीति में उम्मीद एक ऐसा शब्द है जो राजनीतिक दलों को उनके सफर में आगे बढ़ने में मदद करता है। आपने देखा होगा कि आधिकारिक चुनाव नतीजों में भले ही किसी पार्टी को हार का स्वाद चखना पड़े, लेकिन घोषणा होने तक उन्हें जीत की उम्मीद रहती है। हर मंच पर राजनीतिक दल ऊंची आवाज में कहते हैं कि इंतजार करो और देखो क्या होता है, हम अनुमान (राजनीतिक दल एग्जिट पोल अनुमान कहते हैं) पर टिप्पणी नहीं करते।
आपको बता दें कि,पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के एग्जिट पोल के नतीजे आ गए हैं। राजनीतिक दल भी एग्जिट पोल की अपनी-अपनी उपयुक्तता के अनुसार व्याख्या कर रहे हैं। वे उन नतीजों को खारिज कर रहे हैं जो उनके अनुकूल नहीं हैं।' वे अपने अनुकूल परिणाम को आधिकारिक परिणाम घोषित करने से नहीं हिचकिचा रहे हैं। यहां हम बात करेंगे कि इन नतीजों को देखने के बाद किस पार्टी में मिठाई ऑर्डर करने की हिम्मत होगी। भारत के चुनावी इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं जब एग्जिट पोल सटीक पोल में नहीं बदल पाए और मिठाई बनाने या बांटने का सपना अधूरा रह गया।
आमतौर पर छोटे चुनावों में उम्मीदवार चुनाव नतीजे आने से पहले ही मिठाइयां बांटना शुरू कर देते हैं। लेकिन 2008के दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों पर बहुत उम्मीदें टिकी थीं।
2008दिल्ली विधानसभा चुनाव
शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस तीसरी बार चुनाव लड़ रही थी। बीजेपी के रणनीतिकारों को भरोसा था कि सत्ता विरोधी लहर से उन्हें फायदा होगा। एग्जिट पोल के आंकड़े लगभग उनके पक्ष में थे। अब एग्जिट पोल को सटीक पोल मानकर बीजेपी नेताओं ने मिठाइयां ऑर्डर करने का अभियान शुरू कर दिया और जब नतीजे आए तो शीला दीक्षित एक बार फिर विजयी हुईं और बीजेपी की उम्मीदें तीसरी बार टूट गईं। आपको बता दें कि दिल्ली में आखिरी बार बीजेपी ने 1998में सुषमा स्वराज के नेतृत्व में शासन किया था।
2015बिहार विधानसभा चुनाव
इसी तरह 2015के बिहार विधानसभा चुनाव पर भी ध्यान दें। उस चुनाव में सभी एग्जिट पोल्स ने बीजेपी की बंपर बढ़त के आंकड़े पेश किए थे। हालाँकि, केवल एग्ज़िट पोल के नतीजे अलग थे। स्वाभाविक है कि एग्जिट पोल के अनुमानों के बाद बीजेपी ने जश्न की तैयारी शुरू कर दी थी। वोटों की गिनती से पहले ही बीजेपी खेमे में मिठाइयां बननी शुरू हो गई हैं। जाहिर है कि एग्जिट पोल के नतीजों ने उनकी उम्मीदें बरकरार रखीं। लेकिन जब ईवीएम के पेट से वोट निकलने लगे तो हर कोई दंग रह गया। यहां तक कि एग्जिट पोल के जाने-माने विशेषज्ञ चुनाव विश्लेषकों के पास भी कहने को कुछ नहीं था। शायद एग्ज़िट पोल के इतिहास में यह पहली बार हुआ होगा जब अनुमान औंधे मुंह गिरे।
2022 कुरहनी विधानसभा उपचुनाव
इतना ही नहीं, 2022 के बिहार कुरहानी विधानसभा उपचुनाव का जिक्र करना भी दिलचस्प है। वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी को भरोसा था कि वह बीजेपी और जेडीयू-आरजेडी गठबंधन दोनों को हरा देंगे। जीत की उम्मीद का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि काउंटिंग होने से एक दिन पहले से ही उन्होंने शुद्ध घी की मिठाई का ऑर्डर देना शुरू कर दिया था। लेकिन जब नतीजे आये तो उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। जो मिठाइयाँ मिठास देने वाली थीं, वे कड़वी लगने लगीं। बिहार की राजनीति पर नजर रखने वालों ने यहां तक कहा कि वह जीत तो नहीं सके, लेकिन वोटकटवा के तौर पर उन्होंने अपनी पहचान जरूर बना ली।
अब अगर पांच राज्यों के एग्जिट पोल पर नजर डालें तो तेलंगाना ही एक ऐसा राज्य है जहां बीआरएस की जीत दिख रही है। अन्य तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के एग्जिट पोल नतीजों से शायद कोई भी राजनीतिक दल चैन की सांस नहीं ले रहा होगा। कुछ एग्जिट पोल ही कांग्रेस या बीजेपी की जीत का अनुमान लगा रहे हैं। ज्यादातर अनुमान बताते हैं कि नतीजे किसी के भी पक्ष में बदल या बिगड़ सकते हैं। ऐसे में आधिकारिक नतीजों से पहले शायद कोई भी मिठाई ऑर्डर करने के बारे में नहीं सोचेगा।
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