रामायण से महाभारत तक फैली परंपरा, जानें छठ पर्व कैसे बना लोकआस्था का प्रतीक
Chhath Festival 2025: लोक आस्था और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक छठ महापर्व आज से आरंभ हो रहा है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता और सामूहिक एकता का संदेश देता है। सूर्योपासना पर आधारित इस पर्व की उत्पत्ति का सटीक काल निर्धारित करना कठिन है, लेकिन इसके मूल में सूर्य और षष्ठी देवी की आराधना निहित है। भारत की लोक परंपराओं में षष्ठी तिथि का विशेष महत्व माना गया है, जिसे नवजात शिशुओं की रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।
ऋग्वैदिक काल से ही सूर्य की आराधना भारतीय जीवन का हिस्सा रही है। वैदिक ऋषि कमर तक जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। रामायण में माता सीता द्वारा सूर्य व्रत और महाभारत में कुंती एवं द्रौपदी द्वारा सूर्य उपासना का उल्लेख मिलता है। द्रौपदी ने कुरुक्षेत्र युद्ध से पूर्व रांची के नागड़ी गांव में सूर्य षष्ठी व्रत किया था, जहां आज भी यह पर्व झरने के किनारे मनाया जाता है। वहीं रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब भगवान राम और सीता वनवास से लौटे, तब माता सीता ने अयोध्या में प्रवेश से पूर्व सूर्य षष्ठी व्रत का पारायण किया था। इसी व्रत के प्रभाव से उन्हें लव-कुश का आशीर्वाद मिला।
सूर्य का प्राकट्य दिवस और लोकविश्वास
छठ पर्व को सूर्यदेव के प्राकट्य दिवस के रूप में भी माना जाता है। मान्यता है कि अदिति ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य को जन्म दिया था, इसलिए उन्हें ‘आदित्य’ कहा गया। बिहार के मुंगेर और बक्सर क्षेत्र में इस पर्व का गहरा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। सीता चरण मंदिर और वाल्मीकि आश्रम से जुड़ी कथाएं इसे और भी पवित्र बनाती हैं। नेपाल के मधेश प्रदेश तक इस परंपरा की जड़ें फैली हुई हैं, जहां इसे समान श्रद्धा से मनाया जाता है।
लोकआस्था का जीवंत उत्सव बनता छठ
छठ पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि सामाजिक समरसता और नारी शक्ति का भी उत्सव है। ऊषा और प्रत्यूषा — सूर्य की दो पत्नियों — के साथ सूर्यदेव की संयुक्त आराधना इस पर्व का मुख्य केंद्र है। आज यह पर्व बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश की सीमाओं को लांघकर देशभर में लोकआस्था का महापर्व बन चुका है। स्वच्छता, अनुशासन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का यह उत्सव भारतीय संस्कृति की जड़ों से गहराई से जुड़ा हुआ है।
छठ की कथा और पौराणिक मान्यताएं
छठ पर्व से जुड़ी एक प्राचीन कथा राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की है, जिन्हें संतान की इच्छा थी। ऋषि कश्यप के कहने पर उन्होंने यज्ञ किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। दुःखी राजा-रानी के सामने षष्ठी देवी प्रकट हुईं और उन्होंने मृत शिशु को जीवनदान दिया। देवी ने कहा कि वह संसार के समस्त बच्चों की रक्षक हैं और संतानहीन दंपतियों को पुत्ररत्न का आशीर्वाद देती हैं। इसी घटना से छठ पर्व की परंपरा की शुरुआत हुई मानी जाती है। यह कथा लोकविश्वास में मातृत्व, जीवन और सूर्य के जीवंत प्रतीक के रूप में गहराई से रची-बसी है।
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