Explainer: कच्चातिवु गुजरे जमाने की बात...मोदी सरकार ने बांग्लादेश को दी 10 हजार एकड़ जमीन, जानें पूरा मामला
India Bangladesh Land Boundary Agreement: लोकसभा चुनाव का समय हो और माहौल में राजनीतिक हलचल न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। जब बीजेपी ने दक्षिण भारत में पैठ बनाने के लिए कच्चातिवू द्वीप का मुद्दा उठाया तो कांग्रेस ने भी पलटवार करने में देर नहीं की। उन्होंने भारत और बांग्लादेश के बीच भूमि सीमा समझौते (LBA) का मुद्दा उठाया। दोनों देशों के बीच यह समझौता 2015 में हुआ था, जिसमें भारत ने अपने कब्जे वाले 111 एन्क्लेव बांग्लादेश को सौंप दिए थे। आइए आपको विस्तार से बताते हैं कि PMमोदी ने यह समझौता क्यों किया और कच्चातिवु विवाद क्या है।
क्या है कच्चातिवु द्वीप मामला?
सबसे पहले हम आपको कच्चाथीवू द्वीप के बारे में बताते हैं। यह द्वीप तमिलनाडु के रामेश्वरम से 19 किमी दूर समुद्र में स्थित एक छोटा सा द्वीप है। इसका क्षेत्रफल लगभग डेढ़ वर्ग किमी है। इस द्वीप पर भारत और श्रीलंका दोनों ही अपना अधिकार जताते थे। आजादी के बाद तत्कालीन PMने संसद में दिए एक बयान में इसे एक तरह से श्रीलंका का हिस्सा मान लिया था। हालाँकि कागज़ पर ऐसा नहीं हुआ। साल 1970 में तत्कालीन PMइंदिरा गांधी ने श्रीलंका के साथ एक गुप्त समझौता किया और इसे श्रीलंका का हिस्सा मान लिया। इस द्वीप को श्रीलंका को उपहार में देने से तमिलनाडु के लोगों में गहरी नाराजगी है।
कांग्रेस ने याद दिलाया बांग्लादेश समझौता
अब हम बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौते पर आते हैं, जिसमें PMमोदी ने भारत के 111 एन्क्लेव बांग्लादेश को दे दिए थे। कच्चातिवू का मुद्दा उठने पर अब कांग्रेस ने भारत-बांग्लादेश सीमा समझौते की याद दिलाकर मोदी सरकार पर हमला बोला है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पोस्ट किया, 'साल 2015 में मोदी सरकार ने बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते में भारत की 17,161 एकड़ जमीन बांग्लादेश को दे दी गई, जबकि बांग्लादेश से उसे सिर्फ 7,110 एकड़ जमीन ही मिली। ऐसा करने से भारत का भूमि क्षेत्रफल सीधे तौर पर 10,051 एकड़ कम हो गया। लेकिन पड़ोसी देशों के साथ मधुर संबंधों और राष्ट्रहित को देखते हुए कांग्रेस ने मोदी सरकार पर बचकाना आरोप लगाने की बजाय संसद के दोनों सदनों में इस बिल का समर्थन किया।’
162 क्षेत्रों पर अधिकार को लेकर उलझा हुआ था मामला
भारत और बांग्लादेश लगभग 4,000 किलोमीटर लंबी भूमि सीमा साझा करते हैं। इस सीमा का निर्माण सर रेडक्लिफ द्वारा मानचित्र पर खींची गई सीमा और भारत-पाकिस्तान विभाजन से हुआ था। हालाँकि, वास्तविक समस्या तब शुरू हुई जब बांग्लादेश के निर्माण से उन क्षेत्रों का निर्माण हुआ जो कानूनी रूप से भारत के थे लेकिन बांग्लादेशी भूमि से लिए गए थे। कई ऐसे क्षेत्र भी थे जिन पर बांग्लादेश का अधिकार था लेकिन वे भारतीय भूमि से घिरे हुए थे। इस स्थिति के कारण दोनों देश अपने लोगों तक आसानी से नहीं पहुंच पा रहे थे। हालाँकि कांग्रेस ने भी अपने समय में इस मुद्दे पर काम किया था, लेकिन यह प्रक्रिया कभी पूरी नहीं हो सकी।
इसके बाद साल 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई तो इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच 162 अनसुलझे क्षेत्रों का आदान-प्रदान हुआ। इसके तहत बांग्लादेश को 111 इलाके (17,160 एकड़ ज़मीन) दिए गए। जबकि भारत के हिस्से में 51 क्षेत्र (7,110 एकड़ ज़मीन) शामिल थे। सभी 162 क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भारत या बांग्लादेश की नागरिकता चुनने का विकल्प दिया गया। इसके बाद बांग्लादेश के हिस्से वाले 51 इलाकों के 14,854 निवासियों ने भारतीय नागरिकता ले ली। वहीं, 36 हजार से ज्यादा लोगों ने बांग्लादेश की नागरिकता ले ली। बांग्लादेश की नागरिकता चुनने वाले सभी लोग मुस्लिम थे।
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