SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख, बॉम्बे HC के फैसले को किया रद्द!
SC/ST Atrocities Prevention Act: SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत होने वाली अग्रिम जमानत पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के.वी. चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की बेंच द्वारा ये फैसला लिया गया। इस निर्णयतहत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत कुछ शर्तों पर ही स्वीकार्य होगी, जिसके चलते ये यह साबित करना अनिवार्य है कि इस अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं बना है। अपने इस फैसले के चलते बेंच ने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने वाले आदेश को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला एक शिकायतकर्ता की अपील का नतीजा है। उसका आरोप था कि उसे सार्वजनिक रूप से जातिसूचक गालियां देकर अपमानित किया गया, इतना ही नहीं बल्कि उसे लोहे की छड़ से पीटा भी गया। अपराध की दास्तां यहीं खत्म नहीं होती; शिकायतकर्ता की मां और चाची के साथ भी ऐसा दर्दनाक व्यवहार किया गया। इस पूरी घटना पर जस्टिस अंजारिया द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि प्रथम दृष्टया मामला SC/ST अधिनियम की धारा 3के तहत दंडनीय अपराध के तत्वों के आधार पर बनता है।
जाति के नाम पर किया अपमान
शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए बयानों के अनुसार, आरोपी ने उसे उसकी जाति के नाम से अपमानित किया और साथ ही उसके घर में आग लगाने की भी धमकी दी। पीड़ित को नीचा दिखाने के लिए साफ तौर पर मंगत्यानो जैसे शब्दों का प्रयोग किया। सवाल ये उठता है कि आरोपी ने पीड़ित के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया? शिकायतकर्ता के साथ पूछताछ में सामने आया कि आरोपी ने उसके साथ ऐसा सिर्फ इसलिए किया क्योंकि पीड़ित ने अपराधी की इच्छा अनुसार विधानसभा चुनाव में एक विशेष उम्मीदवार को वोट नहीं दिया था।
इस पूरे मामले को लेकर अदालत ने साफ कर दिया कि पहली नजर में यह मामला बनता है या नहीं, यह डिसाइड करने में अदालत 'मिनी-ट्रायल' करके साक्ष्य के दायरे में प्रवेश नहीं कर सकती। आगो कोर्ट का कहना था कि किसी भी अपराध का प्रथम दृष्टया न बनना एक ऐसी स्थिति है जहां कोर्ट सिर्फ FIR के आधार पर बयानों को पढ़कर ही किसी नतीजे पर पहुंच सकती है। जिसके चलते इस केस में FIR में दिए गए आरोप ही निर्णायक होंगे।
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