13 दिसंबर 2001...जब देश ने करीब से देखा आतंक का खौफनाक चेहरा, संसद उड़ाने के लिए आए थे आतंकी
Parliament Attack Anniversary: 13दिसंबर 2001की सुबह करीब 11:30बजे, जब संसद में विपक्ष के नेता सोनिया गांधी और वाजपेयी सरकार के मंत्री बैठक कर रहे थे, तभी दिल्ली के व्यस्त संसद मार्ग पर एक सफेद इंडियन एंबेसडर कार तेजी से संसद भवन के गेट की ओर दौड़ी। कार में सवार पांच आतंकी मोहम्मद, राना, रशीद, हामिद और नासिर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आका के इशारे पर भारत की संसद को निशाना बनाने आए थे। उनके पास AK-47राइफलें, ग्रेनेड और विस्फोटक भरे बैग थे।
AK-47से लैस थे आतंकी
कार ने गेट तोड़ते हुए अंदर घुसने की कोशिश की। दिल्ली पुलिस के जवान जगदीश, नानक चंद और माता प्रसाद ने बिना हिचकिचाहट बाधा डाली। आतंकियों ने तुरंत गोलीबारी शुरू कर दी। पहली गोली ने जगदीश को सीने में लगी और देखते-ही-देखते कुछ ही मिनटों में नानक चंद और माता प्रसाद भी शहीद हो गए। लेकिन ये जवान अकेले नहीं थे। सीआरपीएफ की कमलेश कुमारी ने अपनी जान की परवाह किए बिना कार को रोकने की कोशिश की। उनकी बहादुरी ने आतंकियों को भ्रमित किया और संसद के अंदर घुसने से रोका।
हमला लगभग 45मिनट चला। आतंकियों ने ग्रेनेड फेंके, गोलियां चलाईं, लेकिन दिल्ली पुलिस, सीआरपीएफ और संसद की सुरक्षा बलों ने त्वरित कार्रवाई की। विशेष बलों ने घेराबंदी की और एक-एक कर पांचों आतंकियों को मार गिराया। कुल मिलाकर चार सुरक्षाकर्मी समेत एक माली शहीद हुए संसद भवन के बाहर खून से सन गया था, लेकिन लोकतंत्र का कोई बाल भी बांका न हुआ।
आतंक का मास्टरमाइंड
जांच एजेंसियों ने पाया कि यह हमला पाकिस्तान स्थित आकाओं ने रचा था। अफजल गुरु को मुख्य साजिशकर्ता ठहराया गया, जिसे 2013 में फांसी दी गई। मास्टरमाइंड के रूप में जैश-ए-मोहम्मद के मौलाना मसूद अजहर का नाम सामने आया। इस घटना ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया। ऑपरेशन पराक्रम के तहत भारतीय सेना ने सीमा पर लाखों सैनिक तैनात किए, जो 10 महीने चला।
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