3 देशों में फैला है दुनिया का सबसे पुराना रेगिस्तान, यहां मौजूद हैं भगवान के पैरों के निशान!
Ajab Gajab: रेगिस्तान यानी ऐसी जगह जो एक बंजर जमीन है। आपने अब तक कई रेगिस्तान के बारे में सुने होगें। सहारा दुनिया का बड़ा रेगिस्तान है लेकिन क्या आपको पता है दुनिया में एक ऐसा भी रेगिस्तान है जिसे नर्क का दरवाजा कहा जाता है यही नहीं ये भी कहा जाता है कि वहां देवताओं के पैरों के निशान है यही नहीं कुछ इसे परियों के नाचने से बने निशान बताते हैं। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि यहां पर एलियन आते हैं। हम बात कर रहे हैं दक्षिण अफ़्रीका के उत्तरी इलाके में फैले दुनिया के सबसे पुराने रेगिस्तान, Namib Desert की। यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज़ साइट की लिस्ट में शामिल कर रखा है। इस रेगिस्तान में लाखों गोलाकार आकृतियां बनती हैं, जिनके बारे में ये सारी बातें मशहूर हैं। वैज्ञानिक भी इन गोलाकार आकृतियों के बनने के रहस्य का पता नहीं लगा पाए हैं। लाल रेत के कारण इसकी सतह बिलकुल मंगल ग्रह से मिलती है।
सहारा से भी पुराना है ये रेगिस्तान
5 करोड़ 50 लाख साल पुराने नामीब रेगिस्तान को दुनिया का सबसे पुराना रेगिस्तान माना जाता है। वहीं सहारा रेगिस्तान सिर्फ़ 20 से 70 लाख साल पहले का है। इसलिए इसे दुनिया का सबसे सूखा रेगिस्तान भी कहते हैं।इस रेगिस्तान का वातावरण बहुत गर्म रहता है। इसलिए यहां कोई रहता नहीं है। हालांकि, कुछ जीव और पौधे नामीब मरुस्थल में रहते हैं। इनमें ओरिक्स, हिरणों की प्रजातियां, शुतुरमुर्ग और लकड़बग्घा जैसे जीवों के नाम शामिल हैं। Namib Desert अंगोला से लेकर नामीबिया तक फैला है। यहां पर रेगिस्तान से अटलांटिक महासागर मिलता है। ये लगभग 81000 Sq Km में और तीन देशों में फैला हुआ है।नामीब रेगिस्तान दक्षिणी अंगोला से नामीबिया होते हुए 2,000 किलोमीटर दूर दक्षिण अफ्रीका के उत्तरी हिस्से तक फैला है। नामीबिया के लंबे अटलांटिक तट पर यह नाटकीय रूप से समुद्र से मिलता है।
लगा है कंकालों का ढेर
यहां पर अटलांटिक महासागर के तट पर एक ऐसा इलाका है जहां कई पुराने जहाज ख़राब पड़े हैं। कंकालों का भी यहां ढेर लगा है। दरअसल, यहां पर अटलांटिक की ठंडी लहरों और नमीब रेगिस्तान की गर्म हवा के मिलने से घना कोहरा बनता है। इसके कारण पानी के जहाज़ों को इसे पार करने में मुशकिल होती थी। इसलिए वो अक्सर दुर्घटना का शिकार हो जाते थे।1486 में पुर्तगाल के मशहूर नाविक डिएगो काओ कुछ समय तक के लिए इस तट पर रुके थे। उन्होंने यहां पर क्रॉस की स्थापना की थी.। मगर वो भी यहां ज़्यादा देर तक नहीं रुक पाए थे। यहां से जाते हुए उन्होंने इसे ‘नरक का दरवाज़ा’ नाम दिया था।
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