Places Of Worship Act क्या है? जानें ज्ञानवापी और मथुरा जैसे मामलों में इसकी भूमिका
Places Of Worship Act: ज्ञानवापी परिसर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट कुछ समय पहले सार्वजनिक हुई थी, जिसमें साफ कहा गया था कि वहां मंदिर के अवशेष मिले हैं। रिपोर्ट सामने आने के तुरंत बाद जिला अदालत ने बड़ा फैसला लेते हुए 1993 से बंद पड़े तहखाने को पूजा के लिए खोल दिया। तब से लगातार इस मुद्दे पर चर्चा चल रही है कि देश में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो विवादास्पद हैं। इनमें अयोध्या के राम मंदिर के बाद काशी और मथुरा के अलावा कई जगहें शामिल हैं।
ज्ञानवापी को लेकर क्या है हिंदू पक्ष का दावा?
इसे लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि विवादित जगह पर सतह से करीब 100 फीट नीचे आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। इस मंदिर का निर्माण 2 हजार साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल शासक औरंगजेब ने साल 1664 में इसे तोड़कर मस्जिद बनवा दी थी। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों से किया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(ASI)ने इस दावे की जांच करने का काम किया।
क्या कहता है ये कानून?
ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 के दिन देश में जो भी धार्मिक स्थल और महत्व की इमारतें जिस स्थिति में हैं, उसी स्थिति में रहेंगी। उनका नियंत्रण जिसके पास है, उसी के पास रहेगा। उनके धार्मिक स्वरूप और संरचना में किसी भी तरह का बदलाव नहीं हो सकता। इस कानून में बस धारा 05 के जरिए अय़ोध्या के मामले को अलग रखा गया था, इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट इस पर कोई फैसला कर सका।
इस कानून में कितनी धाराएं और व्यवस्थाएं हैं?
इस कानून में 07 धाराएं हैं। तीसरी धारा स्पष्ट रूप से किसी भी धार्मिक स्थल के मौजूदा स्वरूप में किसी भी संरचनात्मक परिवर्तन पर रोक लगाती है। यह कानून कहता है कि ये अपने पुराने स्वरूप में ही संरक्षित रहेंगे।
अगर इन धार्मिक स्थलों पर कोई ऐतिहासिक प्रमाण या साक्ष्य मिले तो क्या होगा?
तब भी कुछ नहीं होगा। इससे साफ पता चलता है कि ऐतिहासिक साक्ष्यों के बावजूद इसके स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। भले ही यह सिद्ध हो जाए कि इसे तोड़कर बनाया गया है।
क्या पुरातात्विक महत्व की इमारतें भी इस कानून के दायरे में आती हैं?
हाँ, इस दायरे में ताज महल, कुतुब मीनार जैसी पुरातात्विक इमारतें भी आती हैं, जिनका निर्माण निस्संदेह एक धार्मिक वर्ग द्वारा किया गया था लेकिन जहां कोई धार्मिक अनुष्ठान या धार्मिक गतिविधियां नहीं होती हैं।
अगर कोई इन धार्मिक स्थलों से छेड़छाड़ करेगा या उन्हें नुकसान पहुंचाएगा तो क्या होगा?
कानून की धारा 06 के तहत उसे 03 साल की कैद और जुर्माने की सजा दी जायेगी।
ऐसे में मथुरा और ज्ञानवापी जैसे मामलों में यह कानून क्या करेगा?
यह कानून स्पष्ट रूप से उन्हें इसी रूप में बने रहने की इजाजत देगा। इसमें कोई बदलाव नहीं करेंगे। यानी ज्ञानवापी और मथुरा जैसे मामलों में धार्मिक स्थलों के मौजूदा स्वरूप और संरचना में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है।
क्या इस कानून को बदला जा सकता है?
हां, केंद्र सरकार चाहे तो इस कानून में संशोधन कर सकती है, लेकिन इसके लिए उसे संसद में प्रस्ताव पारित कर इसे कानून का रूप देना होगा।
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