खतरे की घंटी या संगठन का अंत? जानें भारत के लिए कितना खतरनाक है ULFA-I

Drone Attack on ULFA-I: 13जुलाई 2025को यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट (ULFA-I) ने दावा किया कि म्यांमार के सागाइंग क्षेत्र में उनके चार ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल हमलों में उनके तीन वरिष्ठ कमांडर, जिसमें लेफ्टिनेंट जनरल नयन मेधी शामिल हैं, मारे गए। संगठन ने 19अन्य कैडरों के घायल होने की बात कही और इन हमलों के लिए भारतीय सेना को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि, भारतीय सेना और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्फा-आई, परेश बरुआ के नेतृत्व में, म्यांमार के जंगलों में सक्रिय है, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी ताकत कमजोर हुई है।
कमजोर पड़ता संगठन, फिर भी खतरा बरकरार
उल्फा-आई की ताकत 1990के दशक की तुलना में काफी कम हो चुकी है। दिसंबर 2023में अरबिंद्र राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट ने केंद्र और असम सरकार के साथ शांति समझौता किया, जिससे संगठन का बड़ा हिस्सा मुख्यधारा में शामिल हो गया। बरुआ के गुट के पास अब केवल 200के करीब कैडर बचे हैं, जो म्यांमार में सक्रिय हैं। भूटान (2003) और बांग्लादेश (2009के बाद) में ठिकानों के नष्ट होने और हालिया गिरफ्तारियों, जैसे रूपम असोम की, ने संगठन को कमजोर किया है। फिर भी, तेल रिफाइनरियों और गैस पाइपलाइनों जैसे असम के बुनियादी ढांचे पर हमले करने की इसकी क्षमता इसे भारतीय सुरक्षा के लिए खतरा बनाए रखती है।
बांग्लादेश की स्थिति और असम चुनाव
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद, परेश बरुआ के पुराने संपर्क, विशेष रूप से पाकिस्तान की आईएसआई और भारत-विरोधी ताकतों के साथ, उल्फा-आई को फिर से संगठित करने की संभावना बढ़ा सकते हैं। असम में मार्च-अप्रैल 2026में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले, केंद्र और राज्य सरकार उल्फा-आई को बातचीत की मेज पर लाने या इसे और कमजोर करने की कोशिश में हैं। बरुआ को शांति वार्ता का प्रस्ताव दिया गया है, लेकिन वह असम की संप्रभुता के मुद्दे पर अड़ा हुआ है। भारतीय सुरक्षा बलों के लिए यह समय उल्फा-आई को निष्क्रिय करने का मौका हो सकता है, जो सत्तारूढ़ बीजेपी को राजनीतिक लाभ भी दे सकता है।
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