'कानून संशोधन के बाद मुनीर तानाशाह...', लोकतंत्र के लिए खतरा बताकर UN ने PAK को दी चेतावनी
UN Warning On Pakistan Law:संयुक्त राष्ट्र (UN) ने पाकिस्तान के हाल ही में पारित 27वें संवैधानिक संशोधन पर कड़ी आपत्ति जताई है। UN मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने 29 नवंबर को बयान जारी कर कहा कि यह संशोधन पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों से मेल नहीं खाता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को गंभीर खतरा पहुंचाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि संशोधन शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ है, जो कानून के शासन और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की शक्तियां बढ़ेंगी, जो देश को 'संवैधानिक तानाशाही' की ओर ले जा सकती हैं।
नये संशोधन से लोकतंत्र होगा कमजोर - UN
UN मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने 29 नवंबर को जारी बयान में कहा कि संशोधन को 'बिना व्यापक परामर्श और बहस के'पारित किया गया, जिसमें कानूनी समुदाय और नागरिक समाज को शामिल नहीं किया गया। उन्होंने चेतावनी दी कि यह शक्तियों के बंटवारे के खिलाफ है, जो कानून के शासन की बुनियाद है और मानवाधिकारों की सुरक्षा करता है। उन्होंने विशेष रूप से उच्च अधिकारियों को आजीवन इम्यूनिटी देने वाले प्रावधान को परेशान करने वाला बताया, जो जवाबदेही को कमजोर करता है।
टर्क ने आगे कहा कि संशोधन पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं से मेल नहीं खाता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में डालता है। UN का मानना है कि इससे देश में मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच प्रभावित हो सकती है, क्योंकि FCC जैसे नए संस्थान राजनीतिक प्रभाव में आ सकते हैं। यह बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है।
मुनीर को'तानाशाह' बताकर प्रदर्शन
संशोधन के खिलाफ पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने इसे मुनीर के लिए सुरक्षा दीवार बताया है, जो उनकी गलतियों से बचाने के लिए बनाई गई है। जेल में बंद इमरान खान ने मुनीर को सबसे डरपोक कहा और दावा किया कि संशोधन से मुनीर तानाशाह बन जाएंगे। PTI समेत विपक्षी गठबंधन तहरीक-ए-तहफुज अयीन-ए-पाकिस्तान (TTAP) ने देशव्यापी प्रदर्शन शुरू किए, जिसमें लोकतंत्र जिंदाबाद और "तानाशाही मुर्दाबाद" के नारे लगाए जा रहे हैं।
विपक्ष का कहना है कि संशोधन जनरल जिया-उल-हक के 8वें संशोधन जैसा है, जो अंततः विफल साबित हुआ। कानूनी विशेषज्ञ इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अंत बता रहे हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट अब सिर्फ सामान्य अपीलों तक सीमित रहेगा। प्रदर्शनों में राजनीतिक कैदियों की रिहाई की भी मांग की जा रही है।
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