कच्चे तेल, ऊर्जा और परमाणु तकनीक तक, रूस संग हुई डील्स से भारत को कितना बड़ा लाभ?
India-Russia Deals:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 23वीं भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक ने दोनों देशों के रिश्तों को नई मजबूती दी है। दिल्ली में आयोजित इस मुलाकात में 16 प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें कच्चे तेल की सप्लाई, न्यूक्लियर ऊर्जा सहयोग और व्यापारिक विस्तार प्रमुख हैं। इन समझौतों का लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाना है। वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच ये करार भारत की ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक वृद्धि और तकनीकी क्षमता को मजबूत करेंगे।
कच्चे तेल की सप्लाई का वादा
बता दें, रूस ने भारत को कच्चे तेल और ईंधन की बिना रुकावट वाली आपूर्ति का आश्वासन दिया है, जो वैश्विक ऊर्जा बाजार की अस्थिरता में एक बड़ा राहत पैकेज है। 2024 में भारत ने अपनी कुल क्रूड आयात का 36 प्रतिशत (लगभग 1.8 मिलियन बैरल प्रतिदिन) रूस से लिया, जो यूक्रेन संकट के बाद बढ़ा। नए समझौते के तहत रूस भारत को प्राथमिकता आधार पर लंबी अवधि की सप्लाई सुनिश्चित करेगा, जिसमें पेट्रोकेमिकल्स और गैस पाइपलाइन सहयोग भी शामिल है।
इससे भारत को ऊर्जा सुरक्षा मिलेगी। वैश्विक प्रतिबंधों के बावजूद सस्ती और स्थिर सप्लाई से ईंधन कीमतें नियंत्रित रहेंगी, जो महंगाई पर अंकुश लगाएगी। इसके अलावा आर्थिक बचत से भी भारत का फायदा मिलेगा। रूसी तेल सस्ता होने से भारत को सालाना अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा की बचत होगी, जो विकास परियोजनाओं में लगाई जा सकेगी। पुतिन ने बैठक में कहा 'रूस भारत की अर्थव्यवस्था के लिए ईंधन का विश्वसनीय स्रोत बनेगा।' जो राष्ट्रीय मुद्राओं में भुगतान बढ़ाने के साथ जुड़कर व्यापार को और मजबूत करेगा।
कुदनकुलम का होगा विस्तार
सिविल न्यूक्लियर सहयोग को गति देने के लिए दोनों देशों ने कुदनकुलम परमाणु संयंत्र के विस्तार पर समझौता किया। यहां छह रिएक्टर्स (प्रत्येक 1,000 मेगावाट क्षमता वाले) बनाए जाएंगे, जो भारत की स्वच्छ ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेंगे। रूस की रोसाटॉम कंपनी तकनीकी सहायता देगी, जिसमें ईंधन आपूर्ति और सुरक्षा प्रोटोकॉल शामिल हैं।
इससे भारत को 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य में न्यूक्लियर हिस्सा बढ़ेगा, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार होगा। रूसी विशेषज्ञता से भारत के इंजीनियरों को प्रशिक्षण मिलेगा, जो स्वदेशी न्यूक्लियर प्रोजेक्ट्स को मजबूत करेगा। इसके अलावा रोजगार और विकास परियोजना से हजारों नौकरियां पैदा होंगी, खासकर तमिलनाडु में, और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बूस्ट मिलेगा।
व्यापार, रक्षा और श्रमिक गतिशीलता
समझौतों का दायरा ऊर्जा से आगे बढ़कर व्यापार, रक्षा और मानव संसाधन तक फैला है। रक्षा क्षेत्र में एस-400 सिस्टम की डिलीवरी तेज होगी, साथ ही सु-57 लड़ाकू विमानों का संयुक्त उत्पादन शुरू होगा। व्यापार के लिए 2030 रोडमैप तैयार किया गया, जिसमें राष्ट्रीय मुद्राओं का उपयोग बढ़ेगा। खास तौर पर, कुशल श्रमिकों की गतिशीलता पर तीन समझौते हुए - माइग्रेशन, अस्थायी श्रम गतिविधियां और अनियमित प्रवास पर। रूस ने निर्माण, आईटी, स्वास्थ्य और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में भारतीय कार्यबल की मांग की है, जहां 2030 तक 30 लाख श्रमिकों की कमी है।
इससे संयुक्त उत्पादन से आयुध निर्यात बढ़ेगा और सीमा सुरक्षा मजबूत होगी। व्यापार वृद्धि से भी भारत को कई फायदे होंगे। 100 अरब डॉलर लक्ष्य से फार्मा, आईटी और कृषि उत्पादों में निर्यात बढ़ेगा। लाखों भारतीय युवाओं को रूस में उच्च वेतन वाली नौकरियां मिलेंगी, जो रेमिटेंस और कौशल विकास को बढ़ावा देगी। आर्कटिक और फार ईस्ट प्रोजेक्ट्स में विशेष भूमिका निभा सकेंगे।
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