सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को दी मंजूरी, संरक्षण और विकास पर उठे सवाल
Aravalli Hills Definition: सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर, 2025 में अरावली पहाड़ियों की एक समान परिभाषा को मंजूरी मिली। नई परिभाषा के अनुसार, अगर किसी भू-आकृति की ऊंचाई आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे ज्यादा है, तो उसे अरावली पहाड़ी माना जाएगा। साथ ही, ऐसी दो या अधिक पहाड़ियां अगर 500 मीटर के दायरे में स्थित हों, तो उन्हें अरावली रेंज कहा जाएगा।
अरावली को लेकर विवाद
ये परिभाषा केंद्र सरकार की समिति की सिफारिश पर आधारित है। हालांकि, इसे लेकर विवाद भी शुरू हो गया है। पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे अरावली का 90 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा संरक्षण के दायरे से बाहर हो सकता है। वहीं, सरकार इसे पुरानी व्यवस्था का विस्तार मान रही है और कह रही है कि इससे खनन और विकास को संतुलित किया जा सकेगा।
कोर्ट ने लगई खनन पर रोक
अरावली के संरक्षण से जुड़ी ये कहानी 2002 से शुरू होती है। अप्रैल 2002 में सेंट्रल एम्पावर्ड कमिटी (CEC) को हरियाणा के कोट और आलमपुर में अवैध खनन की शिकायत मिली। अक्टूबर 2002 में CEC ने खनन रोकने का आदेश दिया। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने कहा कि अवैध खनन से अरावली का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। 30 अक्टूबर 2002 को कोर्ट ने हरियाणा और राजस्थान समेत पूरे अरावली क्षेत्र में सभी प्रकार के खनन पर रोक लगा दी।
सरकार ने की कोर्ट से अपील
इसके बाद राजस्थान में इससे बड़ा संकट पैदा हो गया। मार्बल, ग्रेनाइट और अन्य खनन उद्योग से जुड़े लाखों लोग बेरोजगार हो गए। तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने कोर्ट से अपील की कि चल रहे खनन को बंद न किया जाए, क्योंकि ये लोगों की आजीविका से जुड़ा है। दिसंबर 2002 में कोर्ट ने चल रहे खनन को फिर से शुरू करने की अनुमति दी, लेकिन नई इकाइयों पर रोक जारी रही।
स्थायी हल निकालने के लिए गहलोत सरकार ने एक समिति बनाई। मई 2003 में समिति ने अमेरिकी भू-आकृति विशेषज्ञ रिचर्ड मर्फी के सिद्धांत को अपनाया। मर्फी के अनुसार, केवल समुद्र तल से 100 मीटर ऊंचाई वाली भू-आकृति को ही पहाड़ी माना जाए। हालांकि, समिति ने मर्फी के अन्य सिद्धांतों, जैसे संरचनात्मक और क्षरण आधारित विश्लेषण को नजरअंदाज कर दिया।
पर्यावरणविदों के बीच बनी चिंता
सुप्रीम कोर्ट की नई परिभाषा से अब यह तय होगा कि कौन-सी जमीन अरावली के संरक्षण में आएगी और कौन-सी नहीं। ये फैसला पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाने की दिशा में अहम माना जा रहा है, लेकिन पर्यावरणविदों और स्थानीय जनता में चिंताएं बनी हुई हैं। कई विशेषज्ञ इसे अरावली के बड़े हिस्से को संरक्षण से बाहर करने वाला कदम बता रहे हैं, जिससे भविष्य में इलाके के पारिस्थितिकी और पानी की उपलब्धता पर असर पड़ सकता है।
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