क्या होता म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस ? जहां लगा दुनिया के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा
Munich Security Conference 2024: इस वक्त पूरी दुनिया की नजर जर्मनी के तीसरे सबसे बड़े शहर म्यूनिख पर है। क्योंकि म्यूनिख में म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस चल रही है। इस कांफ्रेंस में दुनिया के सामने आ रही सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने पर चर्चा होती है। इस साल भी इसका आयोजन 16 से 18 फरवरी तक हो रहा है। ये कांन्फ्रेस अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का एक बड़ा मंच बन चुका है। वहीं इस कांफ्रेंस की नींव 1962 में जर्मनी के सैन्य अधिकारी एवाल्ड फोन क्लाइस्ट ने रखी थी।
इसके बाद 1963 से हर साल इसका आयोजन किया जाता है। कोल्ड वॉर के वक्त म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस को वेरकुंडे कॉन्फ्रेंस के नाम से जाना जाता था। उस समय में इसका आयोजन पश्चिम जर्मनी और अमेरिकी के बीच खास संवाद के लिए किया जाता था। वहीं जब बर्लिन की दीवार गिरी तो जर्मनी चांसलर कार्यालय के पूर्व उप प्रमुख होर्स्ट टेलचिक के नेतृत्व में इस कॉन्फ्रेंस की पहुंच मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों के साथ-साथ एशिया तक फैल गई। साल 1999 में इस कॉन्फ्रेंस को सेंट्रल और ईस्टर्न यूरोप के साथ ही साथ भारत, जापान और चीन जैसे देशों के लिए भी खोल दिया गया।
इतने देशों के राजनेता होते हैं शामिल
इशिंगर ने ही म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस को 2011 में एक नॉन प्रॉफिट कंपनी के रूप में स्थापित किया था। लेकिन,साल 2018 में इस कंपनी को म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस फाउंडेशन में बदल दिया गया, जिसके लिए जर्मनी की सरकार के अलावा बड़ी संख्या में दूसरे लोगों और संस्थाओं ने भी दान दिया। इसमें 70 से भी ज्यादा देशों के 350 से 450 तक राजनयिक, नेता और सैन्य अफसर शामिल होते हैं। ये सभी वर्तमान और भविष्य में सुरक्षा की चुनौतियों पर चर्चा करते हैं।
भारत के विदेश मंत्री ले रहे हिस्सा
इस साल ये म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस का 60वां आयोजन है। जिसमें जर्मनी के चांसलर के साथ ही भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, यूक्रेन के प्रेसिडेंट व्लादिमीर जेलेंस्की, अमेरिका की वाइस प्रेसिडेंट कमला हैरिस, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड कैमरून सहित दुनिया भर के तमाम नेता, डिप्लोमैट और मिलिटरी अफसर हिस्सा ले रहे हैं।
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