नफरत फैलाने वालों पर नकेल, लेकिन बोलने की आजादी रहे बरकरार, हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख

Supreme Court On Hate Speech: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नफरत फैलाने वाले कंटेंट (हेट स्पीच) के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकारों को कड़े निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि नफरत फैलाने वाली सामग्री पर प्रभावी नियंत्रण होना चाहिए। लेकिन यह सुनिश्चित किया जाए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुचित प्रतिबंध न लगे।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
हेट स्पीच मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला की पीठ ने की है। सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों से कहा कि वे हेट स्पीच को रोकने के लिए मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू करें। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि पुलिस और प्रशासन को ऐसी शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करनी होगी, खासकर जब ये मामले धार्मिक, जातिगत या सामुदायिक नफरत को बढ़ावा देने वाले हों।
कोर्ट ने आगे कहा 'नफरत फैलाने वाले कंटेंट सामाजिक सौहार्द को नष्ट करते हैं, जिससे देश की एकता को खतरा पहुंचता हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाया जाए। ऐसे में संतुलन बनाना जरूरी है।' कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हेट स्पीच के खिलाफ कार्रवाई पक्षपात रहित होनी चाहिए। साथ ही, किसी विशेष समुदाय या विचारधारा को निशाना नहीं बनाना चाहिए।
हेट स्पीच को लेकर मौजूदा कानून
मालूम हो कि भारत में हेट स्पीच को नियंत्रित करने के लिए कई कानूनी प्रावधान मौजूद हैं। जैसे - भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A (धर्म, जाति आदि के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देना), धारा 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), और धारा 505 (सार्वजनिक शरारत को बढ़ावा देना)। इसके अलावा सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की धारा 66A, हालांकि 2015 में रद्द कर दी गई थी, लेकिन इसके समकक्ष प्रावधान और सोशल मीडिया दिशानिर्देश अभी भी लागू हैं।
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