'मुस्लिम व्यक्ति से शादी करने से नहीं बदलता धर्म' दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह कहा है कि दूसरे धर्म के व्यक्ति से विवाह करने का मतलब यह नहीं कि व्यक्ति स्वचालित रूप से धर्मांतरित हो जाता है। ऐसे में किसी भी महिला के धर्म का निर्धारण केवल उसकी शादी के आधार पर नहीं किया जा सकता। कोर्ट का कहना है कि किसी हिंदू महिला का मुस्लिम पुरुष से शादी करने से उसका धर्म खुद-ब-खुद इस्लाम में नहीं बदला जाता।
कोर्ट ने यह टिप्पणी गुरुवार 24जनवरी को बंटवारे के मामले की सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने साफ किया कि शादी से धर्म परिवर्तन का दावा तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि इसका ठोस प्रमाण न हो।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक लंबित मुकदमे की सुनवाई के दौरान की। जिसमें हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) की संपत्तियों के बंटवारे से संबंधित एक याचिका पर विचार किया जा रहा था। बता दें, ये मुकदमा साल 2007में दायर किया गया था। जिसमें एक हिंदू महिला याचिकाकर्ता ने अपने पिता की संपत्तियों में अपने हिस्से की मांग की थी।
हिंदू महिला ने दावा किया था कि साल 2005के हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम के तहत बेटियों को भी पैतृक संपत्तियों में बराबरी का अधिकार प्राप्त है। हिंदू महिला ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादी, जो पिता की दूसरी पत्नी के बेटे थे। बेटियों की सहमति के बिना संपत्तियों को बेचने की कोशिश कर रहे थे।
कोर्ट ने सुनाया फैसला
अब इस मामले में जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि यह साबित करना बचाव पक्ष की जिम्मेदारी थी कि बड़ी बेटी ने हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम स्वीकार कर लिया है। ऐसे में कोर्ट ने कहा कि बचाव पक्ष इस मामले में कोई ठोस सबूत पेश करने में असफल रहा। जो यह दिखाए कि बड़ी बेटी ने धर्मांतरण की मान्यता प्राप्त प्रक्रिया से गुजरकर इस्लाम धर्म अपना लिया है।
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