POCSO मामलों के गलत इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त बयान, कहा- जागरूकता बढ़ाएं

POCSO मामलों के गलत इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त बयान, कहा- जागरूकता बढ़ाएं

Supreme Court On POCSO: सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम (POCSO) के दुरुपयोग पर गहरी चिंता व्यक्त की है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस कानून का इस्तेमाल वैवाहिक विवादों और किशोरों के बीच सहमति वाले संबंधों में बदले की भावना से किया जा रहा है, जो कानून की मूल भावना के विरुद्ध है। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने मंगलवार को एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें जोर दिया गया कि पुरुषों और लड़कों में कानूनी प्रावधानों के प्रति जागरूकता फैलाना अत्यंत आवश्यक है।

POCSO कानून का उद्देश्य और वर्तमान चुनौतियां

मालूम हो कि POCSO अधिनियम 2012 बच्चों (18 वर्ष से कम आयु) को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था। यह कानून लिंग-तटस्थ है और इसमें विशेष अदालतों, गोपनीय सुनवाई तथा समयबद्ध ट्रायल जैसी प्रावधान हैं। लेकिन हाल के सालों में, अदालतें बार-बार इसकी गलत व्याख्या और दुरुपयोग की शिकायतें दर्ज कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा 'POCSO अधिनियम का दुरुपयोग वैवाहिक कलह और किशोरों के बीच सहमति वाले संबंधों में हो रहा है। हमें लड़कों और पुरुषों में इसके कानूनी प्रावधानों के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए।'

बता दें, यह टिप्पणी वरिष्ठ अधिवक्ता आबाद पोंडा द्वारा दायर PIL पर आई, जिसमें रेप के दंडात्मक प्रावधानों और POCSO कानून के बारे में जन जागरूकता फैलाने की मांग की गई है। याचिका में शिक्षा मंत्रालय को निर्देश देने की बात कही गई है कि 14 वर्ष तक की मुफ्त शिक्षा देने वाले संस्थानों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के प्रावधानों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। साथ ही, नैतिक शिक्षा के माध्यम से लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकार और गरिमापूर्ण जीवन की स्वतंत्रता पर जोर दिया जाए।

वैवाहिक विवादों से किशोर प्रेम तक

अदालतों में POCSO के मामलों का एक बड़ा हिस्सा ऐसे मामलों से जुड़ा है जहां सहमति मौजूद होती है, लेकिन परिवार या सामाजिक दबाव के कारण शिकायत दर्ज कराई जाती है। जैसे वैवाहिक कलह में पति-पत्नी के झगड़ों में POCSO को हथियार बनाकर झूठे आरोप लगाए जाते हैं, जिससे निर्दोष व्यक्ति जेल पहुंच जाते हैं। तो वहीं, 16-17 साल के लड़के-लड़कियों के बीच सहमति वाले रिश्तों को 'अपराध' साबित करने की कोशिश की जाती है, खासकर जब परिवार 'सम्मान' का हवाला देकर पुलिस को शामिल करते हैं।

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