भावनात्मक सफर पर ले जाती है कलाकारों के संघर्ष की कहानी बैंजो

भावनात्मक सफर पर ले जाती है कलाकारों के संघर्ष की कहानी बैंजो

मुंबई: रितेश देशमुख की फिल्म बैंजो आज रिलीज हुई। इसे रवि जाधव ने डायरेक्ट किया है। उनकी कई मराठी फिल्में नेशनल अवॉर्ड भी जीत चुकी हैं। बैंजो इनकी पहली हिंदी फ़िल्म है। 'बैंजो' में मुख्य भूमिकाओं में रितेश देशमुख, नार्गिस फाखरी और धर्मेश हैं।

फिल्म की कहानी मुंबई की गलियों से गुजरती है जिसमें क्रिस यानी नर्गिस फाखरी बैंजो की धुन और उसे बजाने वाले कलाकार की खोज में विदेश से मुंबई आ पहुंचती है। यह धुन उसे अनूठी लगती है और इस कलाकार के साथ मिलकर वह एक बैंड बनाना चाहती है ताकि वह एक मशहूर संगीत प्रतियोगिता में हिस्सा ले सके। लेकिन इस खोज के दौरान उसके सामने कई अड़चनें आती हैं।सवाल है कि क्या क्रिस अपने मकसद में कामयाब हो पाती है. यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। 

फिल्म की खामियों की बात करें तो फिल्म का एक लाइन का ख़्याल तो अच्छा है पर फिल्मकार इसे एक फिल्म के तौर पर फैला नहीं पाए। यह कहानी गणपति महोत्सव में बैंजो बजाने वाले उन कलाकारों के संघर्ष की है जिनकी जगह डीजे या फिर हाईफाई तकनीक ने ले ली है जिसकी वजह से मजबूरन उन्हें किसी और पेशे का सहारा लेना पड़ता है। फिल्म का पहला हिस्सा कमजोर है। यहां ऐसे कई दृश्य हैं जो फिल्म की लंबाई को बढ़ाते हैं। कई सीन पुराने ढर्रे पर चलते दिखते हैं जिन्हें आप पहले देख चुके हैं। कई जगह यह फिल्म रंगमंच नजर आती है. यहां कमजोरी निर्देशक की झलकती है क्योंकि फिल्म की कमान निर्देशक के हाथों में होती है. फिल्म में संजीदगी की तलाश थी, जो गायब दिखी। इसके अलावा फिल्म के कई किरदार नकली लगे.

खूबियों की बात करें तो फिल्म की कहानी अच्छी है और उससे भी ज्यादा अच्छी है फिल्म की सिनेमेटोग्राफी जिसके लिए मनोज लोबो तारीफ के हकदार हैं। बैंजो इंटरवल के बाद बेहतर साबित होती है। हालांकि कहानी में आने वाले मोड़ पहले से ही साफ हो जाते हैं बावजूद इसके फिल्म आपको एक भावनात्मक सफर पर ले जाएगी।

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