
Son of Sardaar 2 Movie Review and Rating in Hindi: ‘सन ऑफ सरदार 2’ के साथ थिएटर में दर्शकों को हंसी का तड़का चाहिए था, लेकिन फिल्म शुरूआती 15मिनट तक तो बिल्कुल फ्लैट रही। जस्सी (अजय देवगन) की कहानी पंजाब से लंदन तक जाती है, जहां उनकी पत्नी डिंपल (नीरू बाजवा) तलाक और प्रॉपर्टी की डिमांड करती है। फिर आते हैं राबिया (मृणाल ठाकुर), दानिश (चंकी पांडे), गुल (दीपक डोबरियाल) जैसे किरदार, जो राजा (रवि किशन) के परिवार के साथ उलझते हैं। कहानी इतनी बिखरी हुई है कि डायरेक्टर विजय कुमार अरोड़ा खुद कन्फ्यूज लगे। एक सीन में भारत-पाकिस्तान एंगल से तालियां तो बटोरीं, लेकिन बार-बार वही घिसा-पिटा फॉर्मूला? दर्शकों को ये ‘बूमर वाइब’ बिल्कुल भी नहीं भाया।
रवि किशन का जलवा, बाकी स्टार्स फीके
अजय देवगन अपने पुराने ढर्रे पर ही दिखे, कुछ नया नहीं। मृणाल ठाकुर की पंजाबी गालियां पहले मज़ेदार लगीं, लेकिन बाद में ठीक-ठाक। पर असली फिल्म में स्टार हैं रवि किशन, जिन्होंने अपनी टाइमिंग और एनर्जी से फिल्म को बचा लिया। दीपक डोबरियाल और संजय मिश्रा जैसे टैलेंट को बर्बाद किया गया, और चंकी पांडे-कुब्रा सैत तो बिल्कुल ‘स्किप’ करने लायक। मुकुल देव की मासूमियत दिल जीत लेती है, लेकिन बाकी किरदार जबरदस्ती ठूंसे लगे। म्यूजिक? ‘पहला तू.. दूजा तू..’ जैसे गाने देखकर हंसी आती है, पर गलत वजह से। टाइटल ट्रैक ही थोड़ा सुनने लायक है।
देखें या स्क्रॉल करें?
‘सन ऑफ सरदार 2’ वही पुराना मसाला है, जो दर्शकों के टेस्ट से मेल नहीं खाता। अगर दिमाग ऑफ करके तालियां-सीटियां बजाने का मूड है, तो थिएटर जाएं, कुछ सीन हंसाएंगे। परिवार के साथ देखना है? पहले चेक कर लो कि पैरेंट्स कितने ‘कूल’ हैं। क्रेडिट्स से पहले एक सरप्राइज कैमियो है, उसे मिस मत करना। कुल मिलाकर, ये फिल्म एक साल में बनी और वैसी ही फील देती है। जल्दबाजी में बनी, बिना सोचे-समझे।
Leave a comment