पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा...3 दिन तक कमरे में लटके रहे IIT छात्र धीरज की कहानी सुन भर आएंगी आंखें

पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा...3 दिन तक कमरे में लटके रहे IIT छात्र धीरज की कहानी सुन भर आएंगी आंखें

Kanpur News: IIT कानपुर के फाइनल ईयर के छात्र धीरज सैनी की रहस्यमयी मौत ने न सिर्फ उसके परिवार को तोड़ दिया, बल्कि पूरे संस्थान को भी झकझोर कर रख दिया है। हरियाणा के एक साधारण परिवार से आने वाले धीरज के पिता हलवाई का काम करते हैं, और चाचा फल का ठेला लगाते हैं। आर्थिक हालात इतने कमजोर थे कि एक समय स्कूल की फीस न भर पाने पर उसका सर्टिफिकेट तक रोक लिया गया था। परिवार ने कर्ज लेकर पढ़ाई जारी रखी, और जब धीरज का चयन IIT कानपुर में हुआ, तो मानो पूरे घर में उम्मीदों की रौशनी फैल गई थी।

संघर्ष की जीत, जो स्थायी न हो सकी

धीरज के चाचा संदीप बताते हैं कि धीरज बेहद समझदार और जिम्मेदार बच्चा था। कभी किसी चीज की मांग नहीं की, क्योंकि जानता था कि घर कैसे चलता है। वह हमेशा कहता था कि जल्द नौकरी करके घर की हालत सुधारूंगा। IIT में उसका दाखिला सिर्फ उसकी मेहनत का ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के त्याग और संघर्ष का फल था। लेकिन किसे पता था कि जिस लड़के ने सभी के सपनों को जिन्दा रखा, वह खुद अंदर ही अंदर टूट रहा था।

तीन दिन तक अकेले पड़ा रहा शव, कोई नहीं जान पाया

बुधवार को जब धीरज का शव हॉस्टल के कमरे में मिला, तब तक उसे मरे तीन दिन हो चुके थे। न कोई सुसाइड नोट, न कोई अलार्म। प्रशासन का कहना है कि निगरानी और काउंसलिंग की व्यवस्था थी, लेकिन यह घटना उन दावों पर बड़ा सवाल खड़ा कर गई है। पोस्टमार्टम के बाद ही मौत के कारणों का खुलासा हो पाएगा, लेकिन इस खामोश विदाई ने न जाने कितने सवाल खड़े कर दिए हैं।

सिस्टम पर सवाल: दो साल में सातवीं मौत

धीरज की मौत IIT कानपुर में दो साल के भीतर सातवीं आत्महत्या है। हर बार संस्थान निगरानी और काउंसलिंग की बात करता है, लेकिन परिणाम जस के तस हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि छात्रों में अकेलापन, मानसिक दबाव और भविष्य की चिंता बढ़ रही है, पर संस्थागत सहायता सिर्फ कागज़ों तक सीमित है। धीरज की मौत ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सिस्टम में कहीं न कहीं एक खतरनाक खामोशी है, जो ज़िंदगियों को निगल रही है।

Leave a comment