History Of Ayodhya: मैं अयोध्या हूं, जानिए, 500 साल का भूमि पूजन तक का सफर...

History Of Ayodhya:  मैं अयोध्या हूं, जानिए, 500 साल का भूमि पूजन तक का सफर...

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राम नगरी अयोध्या का 500 साल का इतिहास

मुनियों और मुगलों से लेकर राजनेताओं तक का इतिहास

कई युगों में छिपा है अयोध्या का इतिहास

1990 में बीजेपी राम मंदिर की लड़ाई का हिस्सा बनी

अयोध्यासुनों मेरी कहानी, मेरी जुबानी, न्यायालय ने दिया न्याय, कई तारीख और सुनवाई के बाद मिला हक, हजारों साल पुराना है इतिहास. दरअसल, आज लगभग 500 साल के बाद अब राम मंदिर भूमि पूजन का इंतजार खत्म हो गया है. जिस कहानी में कई युगों का इतिहास छुपा है. जिस कहानी में कई राजाओं से लेकर मुनियों और मुगलों से लेकर राजनेताओं का इतिहास है.. आइए जानते है अयोध्या का पूरा इतिहास.

मैं भारत के उत्तर में बसा हुआ एक जिला हूं. जो अपने ही लोगों की लड़ाई के बीच खुद को संभाल रहा हूं. मेरा नाम कई काल से देश के इतिहास में विद्यमान है. जिसके बाद भी आज मुझे अपना ही इतिहास बनाने के लिए कई अदालतों में कई सबूत कई गवाह पेश करने पड़े. मुझे अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और स्कंद पुराण में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का स्वरूप बताया गया है.

मैं अयोध्या जिसने इस धरती को महान ऋषि से लेकर महावीर योद्धा दिए और देश का इतिहास कहीं ना कहीं मुझसे होकर गुजरता है. महाराज शिवाकू से लेकर पूरी दुनिया का उद्धार करने वाले मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम और उनके वंशजों को मैंने जन्म दिया लेकिन, आज उन्ही के मंदिर के लिए लगभग 500 सौ सालों से एक उम्मीद की आस लगाए बैठा रहा था और 500 साल बाद मुझे वो मुकाम भी हासिल हो गया है.

मुझे सूर्य पुत्र वैवस्तवत मनु ने सरयू नदी के तट पर लगभग 6 हजार 6 सौ 73 ईसा पूर्व बसाया था. वहीं कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार मुझे बसाने के लिए ब्रह्मा और उनके पुत्र मनु ने साथ विश्वकर्मा जी को भेजा और अपनी ही गोद में भगवान राम का लालन पालन किया औऱ उन्हें पराक्रमी कर बड़ा किया. त्रेता और द्वापर युग के बाद आते हैं कलयुग में जहां कई मुगल शासकों ने अयोध्या पर आक्रमण किया. जिसमें कई राजाओं और प्रजा ने अपना लहु देकर अयोध्या की रक्षा की.

अब आते हैं हम कलयुग से जुड़े इतिहास में जब मैने कई बार मुगल राजाओं के हमले भी झेले और फिर से उसी ताकत के साथ खड़ा हुआ. ये कहानी तब की है जब यहां युगों के सफर में मंदिर को राजा विक्रमादित्य नाम के शासक ने इसका उद्धार किया. जिस पर बाबर के आदेश पर उसके सेनापति ने अयोध्या में बने राम मंदिर को 1528 को तोपों से ध्वस्त करवाया.

इससे पहले महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार तुर्क ने सत्ता के विस्तार में अयोध्या के क्षेत्र को भी शामिल करने का प्रयास किया. हालांकि राजा सुहेलदेव ने बहराईच में उसे मारकर उसके आतंक का अंत किया. इसके बाद भी लगभग कई राजाओं ने यहां पर लगभग 76 बार आक्रमण करने की मंशा बनाई. जिसमें मेरे साथ मेरी गोद में पलने वाली जनता को भी आक्रमण का सामना करना पड़ा औऱ अन्ततः 1528 ई. में मंदिर तोड़ कर मस्जिद का निर्माण कराया गया.

कई युगों और गुलाम भारत के बाद हम बताएंगे कि कैसे अयोध्या नगरी में श्रीराम नाम का डंका गूंजा और कैसे मिली राम लला को उनकी जमीन. इसके बाद आता है स्वतंत्र भारत का युग जहां स्वतंत्र होने के बाद भी मुझे और मेरे साथ कई लोगों को इस मंदिर निर्माण का इंतजार करना पड़ा लेकिन, इसकी लड़ाई की शुरुआत 1989 में हुई. जब पहली बार विश्व हिंदू ने नेतृत्व में कारसेवकों ने अयोध्या जाकर शिलान्यास किया और इस आंदोलन ने यहीं से रफ्तार पकड़ ली और वहीं 1990 में बीजेपी भी इस लड़ाई का हिस्सा बन गई.

जिसके चलते बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने मंदिर बनाने के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक भव्य रथ यात्रा निकाली लेकिन, इसके खिलाफ कई नेताओं ने सियासत की रोटियां सेकी गईं. जिसमें तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव ने रुकवाकर आडवाणी को जेल के अंदर भिजवा दिया. बावजूद इसके कुछ कारसेवकों ने हार ना मानते हुए अयोध्या की ओर चल पड़े. इसके बाद शुरू हुई राजनेताओं की राम मंदिर कारसेवकों के खिलाफ क्रूरता. जब शांति के अपील करने पर भी कारसेवक अपनी जिद पर अड़े रहे. जिसका खामियाजा कई कारसेवकों में शामिल जान गंवा कर देना पड़ा. जी हां यूपी के तत्कालीन सीएम ने कारसेवकों पर गोलियां चलवा दीं.

इन सबके बाद शुरू हुआ अयोध्या मामलों में अदालत में तारीख और सुनवाई का सिलसिला. साल 2010 में हाईकोर्ट में मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू हुई और कोर्ट ने 1994 के इस्माईल फारुकी वनाम भारतीय संघ मामले में फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया लेकिन, नाराज हिंदू संगठन ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली. जिसकी सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में 45 दिन से अधिक लगातार सुनवाई चली और कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने जमीन पर फैसला सुनाया.. और भगवान राम को उनकी जमीन वापस मिल गई.आखिरकार इतने लंबे इंतजार के बाद. त्रेता युग से कलयुग तक मुझे मेरा हक मिल ही गया. मुगलों और राजनेताओं के भूमिका के बाद न्यायलय ने मुझे मेरा हक दिया.

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