
लाखों लोगों के दिलों को न सिर्फ छू लेने बल्कि उनमे राज करने की महारथ रखने वाले पार्श्व गायक मुकेश भले ही हमारे बीच आज नहीं हों, लेकिन उनके गाए एक से एक बेहतरीन गीत आज भी हर किसी की ज़बां पर जैसे बसे हुए हैं। शायद ही किसी को मालूम था कि एक शादी समारोह में गाना गाकर इस आवाज़ को वो पहचान मिलेगी जो उसे धीरे-धीरे दुनिया भर में अपना दीवाना बना देगी। 22 जुलाई को जन्मे मुकेश चन्द्र माथुर को सिर्फ मुकेश का नाम मिला। इस मुकेश ने अपनी सुरमई आवाज़ का ऐसा जादू बिखेरा कि हिंदी सिनेमा में ये नाम राज करने लग गया। ये आवाज़ जिस भी गीत को अपनी आवाज़ देती उसका सुपरहिट होना जैसे तय मान लिया जाता था।
दरअसल, मुकेश की आवाज़ की खूबी को उनके एक दूर के रिश्तेदार मोतिलाल ने तब पहचाना जब उन्होने उसे अपने बहन की शादी में गाते हुए सुना। मोतिलाल उन्हे बम्बई ले गए और अपने घर में रहने दिया। यही नहीं, उन्होने मुकेश के लिए रियाज़ का पूरा इन्तजाम भी किया। इस दौरान मुकेश को एक हिन्दी फ़िल्म निर्दोश (1941) में मुख्य कलाकार का काम मिला। पार्श्व गायक के तौर पर उन्हें अपना पहला काम 1945 में फ़िल्म पहली नज़र में मिला। मुकेश ने हिन्दी फ़िल्म में जो पहला गाना गाया वह था दिल जलता है तो जलने दे जिसमें अदाकारी मोतिलाल ने की। इस गीत में मुकेश के आदर्श गायक केएल सहगल के प्रभाव का असर साफ साफ नजर आया। मुकेश 1974 में मुकेश को रजनीगन्धा फ़िल्म में कई बार यूं भी देखा है गाना गाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। 1976 में जब वे अमरीका के डिट्रोय्ट शहर में दौरे पर थे तब उन्हे दिल का दौरा पडा और उनका निधन हो गया।
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