
Kaal Bhairav Jayanti:भगवान शिव के उग्र रूप कालभैरव को काशी का कोतवाल माना जाता है, जिनके दरबार में बिना अनुमति कोई प्रवेश नहीं कर सकता। काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित कालभैरव मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ी है। विशेष पूजा, भैरवी यज्ञ और प्रसाद वितरण के साथ शहर में उत्सव का माहौल है। तो आइए इस अनोखी परंपरा का रहस्य और कालभैरव की महिमा के बारे में जानते हैं।
कालभैरव जयंती: तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, कालभैरव जयंती 12 नवंबर 2025 को मनाई जा रही है। अष्टमी तिथि की शुरुआत 11 नवंबर मंगलवार की रात 11 बजकर 9 मिनट पर हो चुकी है। जिसका समापन 12 नवंबर बुधवार रात 10 बजकर 58 मिनट पर होगा। ब्रह्म मुहूर्त में 4:36 से 5:18 बजे तक विशेष पूजा का समय है। काशी में कालभैरव मंदिर सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहेगा।
काशी के कोतवाल क्यों कहलाते हैं कालभैरव?
स्कंद पुराण की काशी खंड में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता का विवाद हुआ। तब शिव ने भैरव रूप धारण कर ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया। यह पाप लगने पर भैरव को ब्रह्महत्या दोष लगा। तब शिव जी ने कहा कि तुम काशी जाओ, वहां यह दोष छूट जाएगा। काशी पहुंचते ही ब्रह्महत्या दोष कपाल से गिर गया और शिव ने भैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया। इसलिए कालभैरव को:काशी का रक्षक जो शहर की सीमाओं की निगरानी करते हैं। काल के स्वामी जो मृत्यु के बाद आत्मा को न्याय देते हैं। और पाप नाशक जो भक्तों के पाप हरते हैं, न्याय करते हैं, कहा जाता है।
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