छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों को मिली बड़ी सफलता, 13 महिलाओं समेत 21 नक्सलियों ने किया सरेंडर; 18 हथियार सौंपे

छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों को मिली बड़ी सफलता, 13 महिलाओं समेत 21 नक्सलियों ने किया सरेंडर; 18 हथियार सौंपे

Chhattisgarh Naxalites Surrender:छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में नक्सल विरोधी अभियान को एक और मजबूत झटका लगा है। कांकेर जिले के अंतागढ़ क्षेत्र में रविवार 26 अक्टूबर को 21 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इनमें 13 महिलाएं और 8 पुरुष कैडर शामिल हैं, जिन्होंने सुरक्षाबलों को कुल 18 हथियार सौंपे। इन हथियारों में 3AK-47, इंसास राइफलें और एसएलआर प्रमुख हैं। यह घटना केंद्र सरकार के 2026 तक नक्सल मुक्त भारत के लक्ष्य की दिशा में एक और अहम कदम माना जा रहा है।

पुनर्वास कार्यक्रम के तहत हुआ आत्मसमर्पण

बता दें, यह आत्मसमर्पण 'पूना मार्गम' (नया रास्ता) पुनर्वास कार्यक्रम के तहत हुआ, जो नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए डिजाइन किया गया है। सरेंडर करने वाले नक्सली केशकाल संभाग के उत्तर उप-क्षेत्रीय ब्यूरो (उत्तर बस्तर डिवीजन) की कुएमारी/किस्कोडो एरिया कमेटी से जुड़े थे। इनमें एक प्रमुख डिवीजन कमेटी सेक्रेटरी भी शामिल है, जो संगठन की कमान संभालने वाले उच्च पद पर था।

बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) सुंदरराज पी ने बताया कि ये कैडर लंबे समय से जंगलों में सक्रिय थे और हिंसक गतिविधियों में लिप्त रहे। सरेंडर के बाद सभी को तुरंत चिकित्सा जांच और काउंसलिंग प्रदान की गई। आईजी ने कहा 'यह सरेंडर नक्सली विचारधारा से मोहभंग का स्पष्ट प्रमाण है। हम इन्हें समाज में पुनर्स्थापित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे।' जानकारी के अनुसार, सरेंडर की प्रक्रिया अंतागढ़ थाने में पूरी की गई, जहां स्थानीय प्रशासन और सुरक्षाबलों की मौजूदगी में हथियार जमा किए गए।

आत्मसमर्पण करने के कारण

नक्सलियों के इस बड़े पैमाने पर आत्मसमर्पण के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं। जैसे एक ओर सुरक्षाबलों के निरंतर ऑपरेशन और खुफिया तंत्र ने नक्सलियों को दबाव में डाला है, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार की पुनर्वास योजनाओं ने उन्हें मुख्यधारा की ओर आकर्षित किया। 'पूना मार्गम' के तहत सरेंडर करने वालों को आर्थिक सहायता, आवास, कौशल प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर प्रदान किए जाते हैं। इसके अलावा नियद नेल्लनार योजना के माध्यम से आदिवासी क्षेत्रों में सड़कें, स्कूल और स्वास्थ्य केंद्रों का विस्तार हुआ है, जिससे नक्सली प्रचार का आधार कमजोर पड़ा है।

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