
Gender difference in depression: डिप्रेशन, जिसे अक्सर “साइलेंट डिजीज” कहा जाता है, महिलाओं और पुरुषों में अलग-अलग तरीके से असर करता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित मेटा-एनालिसिस के अनुसार, महिलाओं में डिप्रेशन का खतरा पुरुषों की तुलना में लगभग दो गुना ज्यादा है। इसका मुख्य कारण हार्मोनल बदलाव, प्रेग्नेंसी, पीरियड्स और मेनोपॉज जैसी शारीरिक अवस्थाएँ हैं, जो महिलाओं की मेंटल हेल्थ को सीधे प्रभावित करती हैं। इसके अलावा, पारिवारिक और सामाजिक दबाव महिलाओं को भावनात्मक रूप से अधिक संवेदनशील बनाता है, जिससे डिप्रेशन का जोखिम बढ़ जाता है।
पुरुषों में छुपा दर्द और “साइलेंट मोड”
Johns Hopkins Medicine की रिपोर्ट बताती है कि पुरुष अक्सर डिप्रेशन को बाहर प्रकट नहीं करते। समाज में मर्दों के लिए मजबूत रहने की अपेक्षा के चलते वे अपने दर्द को दबाकर रखते हैं। इसके लक्षण आमतौर पर चिड़चिड़ापन, गुस्सा, नींद की कमी या शराब-नशे का सहारा लेने जैसे रूप में दिखते हैं। वहीं महिलाएं अपने इमोशंस को व्यक्त करने के लिए दोस्तों, परिवार या डॉक्टर से बात करती हैं, रोती हैं और सलाह लेती हैं। इस वजह से पुरुषों में डिप्रेशन अक्सर लंबे समय तक छुपा रह जाता है।
मस्तिष्क और हार्मोन में अंतर
साइकोलॉजिस्ट्स के अनुसार, पुरुष और महिलाओं में डिप्रेशन के कारण समान हो सकते हैं, जैसे तनाव या अकेलापन, लेकिन उनका प्रतिक्रिया पैटर्न अलग होता है। महिलाओं के मस्तिष्क में सेरोटोनिन का स्तर अधिक संवेदनशील होता है, जिससे वे भावनाओं को गहराई से महसूस करती हैं। जबकि पुरुषों का मस्तिष्क समस्या-सुलझाने और व्यावहारिक निर्णय लेने पर केंद्रित रहता है, इसलिए वे अपनी भावनाओं को दबाते हैं। यह दबाव समय के साथ डिप्रेशन को और बढ़ा देता है।
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