हिंदू विवाह में कब शुरू हुई मंगलसूत्र की प्रथा? सियासी हंगामें के बीच जाने इसका इतिहास

हिंदू विवाह में कब शुरू हुई मंगलसूत्र की प्रथा? सियासी हंगामें के बीच जाने इसका इतिहास

Mangalsutra History: मंगलसूत्र को लेकर देश में सियासी घमासान शुरू हो गया है। ये मामला तब उठा जब पीएम मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र पर निशाना साधते हुए कहा था कि ये आपका मंगलसूत्र भी नहीं बचने देंगे। पीएम के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा, मेरी मां का मंगलसूत्र देश के लिए बलिदान हो गया। अगर उन्होंने इसका महत्व समझा होता तो ऐसी बात नहीं कहते। ये तो हुई राजनीति की बात, अब आइए मंगलसूत्र का इतिहास समझते हैं।

भारत में मंगलसूत्र को लेकर कई मान्यताएं रही हैं। इसे विवाह और विवाहित महिलाओं की निशानी माना जाता था। ऐसा कहा जाता था कि यह दुल्हन को बुरी नज़र से बचाता है और इसे पति-पत्नी के बीच प्यार के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। अगर हम इसके इतिहास को समझें तो पाते हैं कि यद्यपि मंगलसूत्र उत्तर भारत में सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ, लेकिन इसकी जड़ें दक्षिण भारत से जुड़ी हुई हैं।

कहलाता था मंगलयम

यह दो शब्दों से मिलकर बना है। 'मंगल' का अर्थ है पवित्र और 'सूत्र' का अर्थ है धागा। समाज में इसे विवाह की मान्यता के तौर पर भी देखा जाता है। इतिहासकारों का दावा है कि शुरुआती दौर में मंगलसूत्र का अर्थ और स्वरूप वैसा नहीं था जैसा आज है। अथर्वेद के अनुसार, दुल्हन को केवल आभूषणों से सजाने की प्रथा थी क्योंकि आभूषण शुभ माने जाते थे। तमिल भाषा में लिखे प्राचीन संगम साहित्य के अनुसार इसका उल्लेख 300 ईसा पूर्व मिलता है, जब दूल्हा दुल्हन के गले में डोरा बांधता था। उस काल में इसे थाली या मंगलयम के नाम से जाना जाता था।

कहां से आया मंगलसूत्र?

कई रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि इसकी शुरुआत दक्षिण भारत के तमिलनाडु से हुई। धीरे-धीरे यह उत्तर भारत में प्रचलित हुआ और दाम्पत्य जीवन का प्रतीक बन गया। द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, तमिल साहित्य में मंगलसूत्र को विवाह का प्रतीक नहीं माना जाता था। महाकाव्य सिलप्पाधिकरम में कोवलन और कन्नगी के विवाह का वर्णन किया गया है, जो थाली के बिना एक साधारण समारोह था।

संस्कृत महाकाव्य भी राजकुमारों की कहानियां बताते हैं, और उनमें से किसी ने भी किसी स्वयंवर में थाली नहीं बांधी थी। इसलिए थाली तमिलों या हिंदुओं की प्राचीन संस्कृति का प्रतीक नहीं है। यह काले मंगलसूत्र के रूप में नहीं होता था। धागे हो हल्दी के पानी में में डुबोकर पीला रंग दिया जाता था और दूल्हा इसे दुल्हन को पहचाना था। वर्तमान में ऐसी एक प्रथा गोंड और मुंडा जनजाति में प्रचलित है, हालांकि इनमें दुल्हन को पत्तियों की माला पहनाई जाती है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में भारतीय आभूषणों की इतिहासकार डॉ। ऊषा बालाकृष्णन कहती हैं, मंगलसूत्र से ही विवाह सम्पन्न होगा, प्राचीन भारत में ऐसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं था। आज हम हीरे, पेंडेंट और इसी तरह की अन्य चीजों के साथ इसे तैयार कराते हैं। उस दौर में पवित्र धागे का विचार अस्तित्व में था और दुल्हन को आभूषणों से सजाने की प्रथा भी थी।

बालाकृष्णन और मीरा सुशील कुमार ने अपनी किताब ‘इंडियन ज्वेलरी: द डांस ऑफ द पिकॉक’ में लिखा है कि ऐतिहासिक रूप से भारत में “गहने वैवाहिक जीवन के शुभ प्रतीक थे। केवल विधवा पर या सांसारिक मोहमाया को त्यागते समय उन्हें उतारा जाता था। किताब में अथर्वेद के बारे में लिखा गया है कि विवाह समारोह दुल्हन के पिता के यह कहने के साथ समाप्त होता था कि “मैं सोने के आभूषणों से सजी इस लड़की को तुम्हें देता हूं।”

बालाकृष्णन बताती हैं, मंगल सूत्र का किसी भी धार्मिक ग्रंथ में ‘विवाह आभूषण’ के रूप में उल्लेख नहीं किया गया है। मंगलसूत्र एक शुभ धागे के रूप में माना जाता था। परंपरागत रूप से और आज भी शुभ अवसरों के दौरान, हल्दी या कुमकुम में भिगोया हुआ धागा शरीर के नाड़ी बिंदुओं जैसे गर्दन या कलाई पर बांधा जाता है।

समय के साथ मंगल सूत्र के स्वरूप और बनावट में जाति और समुदायों के बीच भी अंतर आ गया। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु और केरल में, मंगल सूत्र को थाली के नाम से जाना जाता है, जो ताड़ के पेड़ की एक प्रजाति या ताड़ के पेड़ों के झुंड को संदर्भित करता है। हालांकि इस शब्द की उत्पत्ति पर साहित्य में उस तरह से साक्ष्य नहीं मिलते हैं। आज भी गोंड, सावरस और मुंडा जनजातियों के बीच, दूल्हा दुल्हन के गले में ताड़ के पत्ते के साथ एक धागा बांधता है।

काले और सुनहरे मोतियों का कनेक्शन

समय के साथ मंगलसूत्र का स्वरूप बदलता गया। सामान्य से पीले धागे की जगह काले और सोने के मोतियों ने ले ली। मंगलसूत्र को लेकर देश में मान्यताएं कम नहीं हैं। माना जाता है कि यह इसमें मौजूद काले मोती भगवान शिव का रूप हैं और सोने का सम्बंध देवी पार्वती से है। यही वजह है कि मंगलसूत्र में काले और सोने के मोती धारण करने से भगवान शिव और पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। दाम्पत्य जीवन मधुर और मजबूत होता है।

मान्यता है कि मंगलसूत्र में 9 मनके मौजूद होते हैं, ये मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन 9 मनकों को पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि के प्रतीक के तौर पर माना गया है। जिससे पति और दाम्पत्य जीवन पर नजर नहीं लगती।

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