कबीर जयंती: संत कबीर ने पढ़ाया समाज को एकता का पाठ, याद आये कबीर के दोहे

कबीर जयंती: संत कबीर ने पढ़ाया समाज को एकता का पाठ, याद आये कबीर के दोहे

नई दिल्ली: भारतीय संस्कृति में कबीर दास को कौन नहीं जानता है. 'ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय' का संदेश देने वाले कबीर समाज को नई दिशा देने वाले संत थे. आज पूरा देश कबीर दास की जंयति मनाई जा रही है. आज 24जून को जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कबीर जयंती मनाई जा रही है. कबीर दास का जन्म 1398 (संवत 1455) में  माना जाता है. तब हर तरफ सर्वत्र धार्मिक कर्मकांड और पाखंड का बोलबाला था. उन्होंने इस पाखंड के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और लोगों में भक्ति भाव का बीज बोया. उनके दोहों ने हमेशा उन्नति का मार्ग खोला है और बेहतर समाज के लिए सही ज्ञान  दिया है. सन् 1518 (संवत 1575) माघ शुक्ल पक्ष, तिथि एकादशी को कबीर साहेब ने इस लोक से शरीर का त्याग किया.

हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे. कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे. निर्गुण विचारधारा को मानने वाले कबीर दास की रचनाएं समाज के परिवर्तन के लिए बहुत असरदार है. इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया. उनका लेखन सिक्खों के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है, वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे. उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना भी. उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें बहुत प्रताड़ित किया.

कबीर के शिष्यों ने फिर उनकी विचारधारा पर एक पंथ की शुरुआत की, जिसे कबीर पंथ कहा जाता है. कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं. माना जाता है कि देशभर में करीब एक करोड़ लोग इस पंथ से जुड़े हुए हैं. हालांकि ये पंथ भी अब कई धाराओं में बंट चुका है. कबीर के शिष्यों ने धर्मों में व्याप्त कुरीतियों के प्रति लोगों को सचेत किया. संत कबीर रामानंद के शिष्य थे. रामाननंद वैष्णव थे, लेकिन कबीर ने निर्गुण राम की उपासना की. यही कारण है कि कबीर की वाणी में वैष्णवों की अहिंसा और सूफियाना प्रेम है.

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