History Of India's Budget: इतने में तो दिल्ली में बंगला भी नहीं आएगा...देश का पहला बजट जान उड़ जाएंगे होश

History Of India's Budget: इतने में तो दिल्ली में बंगला भी नहीं आएगा...देश का पहला बजट जान उड़ जाएंगे होश

History Of India's Budget: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश किया। वैसे तो देश में हर साल बजट पेश किया जाता है, लेकिन इनमें से कुछ बजट ऐसे भी हैं जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा हमेशा के लिए बदल दी है। देश में पिछले 75 वर्षों में सत्ताधारी पार्टियों ने बजट में अपनी सोच के मुताबिक बदलाव किए। इनमें से कई बजट देश की अर्थव्यवस्था की दिशा बदलने वाले साबित हुए। तो कुछ को काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। जानिए देश के कुछ ऐतिहासिक बजट के बारे में...

​1947: आजाद भारत का पहला बजट

आजादी के बाद यह देश का पहला बजट था। इसे 26 नवंबर 1947 को देश के पहले वित्त मंत्री आरके शनमुखम चेट्टी ने पेश किया था। उस समय भारत के सामने पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को बसाने की बड़ी चुनौती थी। सरकार के पास इसके लिए पैसे नहीं थे। देश का पहला बजट 197.39 करोड़ रुपये था, जिसमें से 46% रक्षा सेवा विभाग को आवंटित किया गया था। इसमें किसी नये कर का प्रावधान नहीं था।

1968: पीपुल सेंसिटिव बजट

यह देश का पहला जन संवेदनशील बजट था। इसे 29 फरवरी 1968 को तत्कालीन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने पेश किया था। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि इसने फैक्ट्री गेट पर सामान की स्टैंपिंग और मूल्यांकन की बाध्यता को खत्म कर दिया। इसके स्थान पर स्व-मूल्यांकन की प्रणाली शुरू की गई। इसका असर ये हुआ कि देश में मैन्युफैक्चरिंग को गति देने में काफी मदद मिली। इस बजट में जीवनसाथी भत्ता भी खत्म कर दिया गया।

​1973: ब्लैक बजट

इसे 28 फरवरी, 1973 को वित्त मंत्री यशवंतराव बी चव्हाण द्वारा पेश किया गया था। वित्तीय वर्ष 1973-74 के बजट में अनुमानित राजकोषीय घाटा 550 करोड़ रुपये था। इसीलिए इसे ब्लैक बजट कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। कोयले पर सरकार का नियंत्रण हो जाने से बाज़ार में प्रतिस्पर्धा समाप्त हो गई। उस समय देश बुरे आर्थिक दौर से गुजर रहा था।

​1991: आर्थिक उदारीकरण

इसे देश के इतिहास का सबसे क्रांतिकारी बजट माना जाता है क्योंकि इससे भारत में उदारीकरण की शुरुआत हुई थी। उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था नाजुक दौर में पहुंच गई थी। देश भुगतान संतुलन संकट का सामना कर रहा था। सरकार के पास सुधारों के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। 24 जुलाई 1991 को तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने यह ऐतिहासिक बजट पेश किया था। इसमें आयात और निर्यात के क्षेत्र में बड़ा फैसला लिया गया। नेहरू के जमाने से चले आ रहे लाइसेंस राज को खत्म किया गया। सभी प्रमुख क्षेत्र घरेलू और विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिये गये।

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