ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री पद संभालना के बाद भारत को कैसे होगा फायदा, जानें दोनों देशों के महत्वपूर्ण मुद्दे

ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री पद संभालना के बाद भारत को कैसे होगा फायदा, जानें दोनों देशों के महत्वपूर्ण मुद्दे

नई दिल्लीभारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक ऋषि सुनक मंगलवार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और ब्रिटेन के रिश्तों में और गहराइयां आ चुकी है। महज सात हफ्तों पहले प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर होने के बाद उनकी इस वापसी ने यह सिध्द कर दिया है कि वह इस पद के लिए ना केवल का काबिल है बल्कि योग्य भी है। सुनक ने ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन एक इतिहास रच दिया है। वहीं अब यह भी सवाल सवाल खड़ा होता है कि यहां से भारत और ब्रिटेन के संबंध किस ओर जाएंगे?ऋषि सुनक का यह भारतीय संस्कृति यह जुड़ावभारत के लिए कितना फायदेमंद होगा।

सुनक प्रधानमंत्री पद संभालना भारत के लिए कैसे है फायदेमंद

अगर हम बात करें ऋषि सुनक के धार्मिक जुड़ाव के बारे में तो वह कृष्ण भक्त हैं। वहीं यह ब्रिटेन के इतिहास में भी यह पहली बार है कि वहां किसी अश्वेत ने सत्ता संभाली है। वहीं ऋषि सुनक का हिंदू होना अप्रत्यक्ष रूप से भारत को वैश्विक तौर पर एक वैचारिक और धार्मिक मजबूती देता है। वहीं सुनक ब्रिटेन की सत्ता के शीर्ष पद पर पहुंचे हैं तो इसके पीछे उनकी काबिलियत और उनका पेशेवर रुख को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।उन्होंने कुछ समय के लिए ही सही लेकिन ब्रिटेन का वित्तमंत्री रहते हुए अपनी क्षमता से प्रभावित किया था, इसलिए आर्थिक संकट और अस्थिरता से जूझ रहे ब्रिटेन को ऋषि सुनक में संभावनाएं दिखाई दीं। यही वजह है कि ज्यादातर टोरी सांसदों ने उन्हें कंजर्वेटिव पार्टी का नेता और पीएम चुन लिया। अगर ऋषि सुनक ब्रिटेन की सत्ता पर बने रहे पर सफल रहते है तो लंबे समय में भारत को इसका फायदा मिल सकता है।

भारत और ब्रिटेन के बीच महत्वपूर्ण मुद्दा

सुनक का ब्रिटेन की सत्ता संभालना और साथ ही ब्रिटिश हितों को साधन, इसके साथ वह भारत के साथ कैसे संबंध बनाते है यह भविष्य में एक बड़ा सवाल हो सकता है। इस वक्त भारत और ब्रिटेन के बीच संबंध की बात की जाए तो FTफ्री ट्रेड एग्रीमेंट (मुक्त व्यापार समझौता) एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है। भारत और ब्रिटेन के बीच 2030 तक 100 अरब डॉलर के निवेश को बढ़ावा देने के लिए मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होने हैं। लिज ट्रस के छोटे से कार्यकाल के दौरान भी यह करार अधर लटक रहा। भारत अब इस मौके फायदा उठाने के बारे जरूर सोच रहा होगा।

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