
मालदीव को नया राष्ट्रपति मिल गया है। मोहम्मद मुइज्जू निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह को हराकर चुनाव के विजेता के रूप में उभरे। आपको बता दें कि सोलिह के सत्ता में आने के बाद से भारत और मालदीव के रिश्ते काफी मजबूत हो गए हैं। वहीं मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह 17 नवंबर तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में काम करेंगे।
वहीं, मोहम्मद मुइज्जू और उनकी पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस को चीन समर्थक के रूप में देखा जाता है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मोहम्मद सोलिह को सत्ता से हटाने के लिए मोहम्मद मुइज्जू और उनकी पार्टी ने चुनाव में 'इंडिया-आउट' अभियान का नारा दिया था। मुइज्जू का आरोप है कि सोलिह के कार्यकाल में भारत ने मालदीव की संप्रभुता और स्वतंत्रता में दखल दिया है।
मोहम्मद मुइज्जू ने हासिल की ऐतिहासिक जीत
आपको बता दें कि, राष्ट्रपति चुनाव में निवर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को 54 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। वहीं, मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह को 46 फीसदी वोट मिले हैं। मुइज्जू ने करीब 18 हजार वोटों से जीत हासिल की है।
इससे पहले 9 सितंबर को हुए चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को 50 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिले थे, जिसके बाद 30 सितंबर को दोबारा मतदान हुआ था। दरअसल, मालदीव का राष्ट्रपति चुनाव भी फ्रांस की चुनाव प्रणाली के समान है। जहां विजेता को 50 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त करना आवश्यक है। यदि पहले दौर में किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिलते हैं, तो दूसरे दौर में शीर्ष दो उम्मीदवारों के बीच चुनाव होता है।
भारत के लिए चुनाव नतीजे अहम हैं
हिंद महासागर में स्थित सौ से अधिक द्वीपों का देश मालदीव भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश है। ऐसे में रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस चुनाव के नतीजे पर भारत के साथ-साथ चीन की भी नजर थी। यहां तक कि इस राष्ट्रपति चुनाव को मालदीव के लोगों के जनमत संग्रह के रूप में भी देखा जा रहा था कि मालदीव को भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखना चाहिए या चीन के साथ।
मोहम्मद मुइज्जू की जीत के बाद विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और मालदीव के बीच रिश्ते एक बार फिर खराब हो सकते हैं। क्योंकि मोहम्मद मुइज्जू और उनकी पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस को चीन समर्थक के तौर पर देखा जाता है। मोहम्मद सोलिह से पहले पीपुल्स नेशनल कांग्रेस पार्टी के अब्दुल्ला यामीन मालदीव के राष्ट्रपति थे। उस वक्त भी भारत और मालदीव के रिश्ते अपने सबसे निचले स्तर पर थे।
मोहम्मद सोलिह की हार भारत के लिए करारा झटका है
मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे को भारत के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है। इस चुनाव परिणाम ने मालदीव और भारत के बीच राजनयिक संबंधों को एक बार फिर वहीं पहुंचा दिया है जहां दोनों देशों ने पांच साल पहले शुरुआत की थी। मालदीव के निवर्तमान राष्ट्रपति मुइज्जू ने पिछले साल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों के साथ बैठक में कहा था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में लौटती है तो दोनों देशों (चीन-मालदीव) के बीच मजबूत संबंधों में एक और अध्याय जुड़ जाएगा।
2008 के बाद मालदीव का झुकाव चीन की ओर
2008 में जब मोहम्मद नशीद मालदीव के राष्ट्रपति बने तो राजनयिक संबंधों को और मजबूत करने के लिए भारत ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को नशीद के शपथ ग्रहण में भेजा। मोहम्मद नशीद के कार्यकाल की शुरुआत में भारत और मालदीव के बीच रिश्ते अच्छे थे, लेकिन धीरे-धीरे मालदीव की चीन से नजदीकियां बढ़ने लगीं।
भारत को मालदीव से तब झटका लगा जब 2012 में नशीद सरकार ने मालदीव हवाई अड्डे के लिए भारत के साथ जीएमआर अनुबंध रद्द कर दिया। 2013 में मालदीव में अब्दुल्ला यामीन के सत्ता में आने के बाद, भारत और मालदीव के बीच संबंध और खराब हो गए। यामीन के कार्यकाल में ही मालदीव चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट में शामिल हुआ। जबकि भारत हमेशा से चीन के इस प्रोजेक्ट का कड़ा विरोध करता रहा है।
यामीन के कार्यकाल में मालदीव सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे थे। ऐसे में भारत और पश्चिमी देशों ने मालदीव को कर्ज देने से इनकार कर दिया। जिसके बाद यामीन सरकार ने चीन की ओर रुख किया। चीन ने मालदीव को बिना किसी शर्त के कर्ज दिया। यामीन के कार्यकाल में मालदीव में चीन का विस्तार भारत के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था।
भारत पर क्या होगा असर?
कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मुइज्जू के राष्ट्रपति चुनाव जीतने से मालदीव में भारत के हितों को खतरा हो सकता है। मोहम्मद सोहेल की भारत समर्थक नीति के विपरीत मुइज्जू की नीति चीन समर्थक हो सकती है। इसका मतलब यह है कि मालदीव चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते को प्रभावी ढंग से लागू कर सकता है।
इसके अलावा मालदीव सरकार भारत से अपने सैनिक वापस बुलाने के लिए कह सकती है। ऐसे में मालदीव की मदद से चीन एक बार फिर हिंद महासागर में बड़ी भूमिका निभा सकता है। जो भारत के लिए चिंता का विषय है। क्योंकि भारत किसी दूसरे देश को हिंद महासागर में श्रीलंका जैसी स्थिति में नहीं देखना चाहता।
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