रैलियों में जुटने वाली भीड़ होती है जीत की गारंटी !

रैलियों में जुटने वाली भीड़ होती है जीत की गारंटी !

हरियाणा विधानसभा चुनाव में उतरने वाले सभी राजनीतिक दल, जनता के बीच तो पहुंच ही रहे हैं। लेकिन साथ ही रैलियों के जरिए अपना शक्ति प्रदर्शन भी कर रहे हैं। रैलियों में जुटने वाली भीड़ सियासी दलों के लिए किसी energy booster की तरह होती है।

जिससे दलों के नेताओं को इस बात का ऐहसास होता है कि जनता के बीच उनकी धमक कितनी है। और कितना जन समर्थन उनके पक्ष में है। लेकिन क्या चुनावी रैलियों में जुटने वाली भीड़ वाकई जीत की गारंटी हो सकती है।

चुनावी बिगुल बज चुका है और अब सियासी दल अंदाजा कर लेना चाहते हैं कि जनता के बीच उनकी विश्वसनीयता, और लोकप्रियता कितनी है। और इसके लिए सहारा लिया जा रहा है रैलियों और जनसभाओं का राष्ट्रीय दलों के नेता तो रौलियों और जनसभाओं के जरिए शक्ति प्रदर्शन कर ही चुके हैं। वहीं ताऊ देवीलाल की जयंती के मौके पर चौटाला परिवार भी अपनी सिसायी ताकत दिखा रहा है।

इनेलो और जेजेपी में बंट चुका 'चौटाला परिवार' अब ताऊ देवीलाल के सहारे अपनी सियासत को बढ़ाना चाहता है। इसी के मद्देनजर पहले दुष्यंत चौटाला की जेजेपी ने ताऊ चौधरी देवीलाल की जयंती मनाई और अब अभय चौटाला ने अपना शक्ति प्रदर्शन किया। 1987 में हुए विधानसभा चुनाव में 90 में से 85 सीटें जीतकर तहलका मचाने वाली ताऊ देवीलाल की पार्टी आज बिखर चुकी है, और 32 साल बाद अपने राजनीतिक वजूद को बचाने के लिए ताऊ चौधरी देवीलाल का कुनबा संघर्ष कर रहा है। इनेलो और जेजेपी दोनों ही पार्टियां चौधरी देवीलाल के नाम पर अपनी सियासी नैया पार लगानी चाहती हैं।

ऐसा पहली बार हुआ है जब ताऊ देवीलाल के बिखरे हुए कुनबे ने अलग-अलग उनका जयंती समारोह मनाया हो,  22 सितंबर को रोहतक में जेजेपी ने 'जन सम्मान दिवस' के रूप में विशाल रैली की और दुष्यंत चौटाला ने चौधरी देवीलाल की विरासत का असल वारिस खुद को बताने की कोशिश की रैली में जेजेपी ने किसानों, बुजुर्गों से लेकर युवाओं के लिए कई चुनावी वादे किए वहीं कैथल में इनेलो ने सम्मान दिवस समारोह में अपना शक्ति प्रदर्शन किया, और मंच से अपने पार्टी के घोषणा पत्र का खाका पेश किया कुल मिलाकार रैलियों के जरिए सियासी दल अपना शक्ति प्रदर्शन करने के साथ भविष्य की योजनाओं का खाका भी खींच रहे हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि रैलियों में जुटने वाली ये भीड़ क्या वाकई वोट बैंक में कंवर्ट होती है, क्या इस तरह से किया गया शक्ति प्रदर्शन सियासी दलों की मजबूती को दर्शाता है।

शक्ति प्रदर्शन के जरिए अपनी मजबूती और जनता के बीच अपनी मौजूदगी का का एहसास सियासी दल करना चाहते हैं। लेकिन ये जरूरी नहीं कि तस्वीर जो दिखाई दे, वही उसकी हकीकत भी हो जिस तरह सिक्के के दो पहलु होते हैं, और उसके अलग अलग रुख पर हार और जीत का फैसला किया जाता है। उसी तरह ये चुनावी रैलियां भी होती हैं। जिनमें दम तो हर दल दिखाता है। लेकिन फैसला उसी के हक में होता है, जिसपर जनता विश्वास दिखाती है।

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