
नई दिल्ली: कर्ज...हिंसा...आर्थिक संकट की मार से जूझ रहे श्रीलंका को अब ऐसे राजनीतिक नेतृत्व की तलाश है जो देश के लिए न सिर्फ अभूतपूर्व फैसले ले सके बल्कि चमत्कारिक नतीजे भी दिला सके।श्रीलंका के राष्ट्रपति पूरी मेहनत से ऐसे स्टेट्समैन की तलाश कर रहे हैं, लेकिन उनकी ये कोशिश कुछ खास रंग नहीं दिखा पा रही है।
लेकिन इस खोज में नाम बार बार सामने आ रहा है। यह नाम है रानिल विक्रमसिंघे, रानिल 1994 से यूनाइटेड नेशनल पार्टी के प्रमुख रहे हैं। वह अब तक 4 बार श्रीलंका के पीएम रहे चुके हैं। महिंदा के 2020 में पीएम बनने से पहले भी रानिल ही श्रीलंका के पीएम थे। 73 साल के रानिल ने वकालत की पढ़ाई की हुई है। 70 के दशक में रानिल ने राजनीति में कदम रखा और पहली बार 1977 में सांसद चुने गए थे। 1993 में पहली बार पीएम बनने से पहले रानिल उप विदेश मंत्री, युवा और रोजगार मंत्री सहित कई और मंत्रालय संभाल चुके हैं।
बता दें कि नए पीएम को नियुक्त करने से पहले गोताबया राजपक्षे से साफ कहा था कि मैं युवा मंत्रिमंडल नियुक्त करूंगा जिसमें राजपक्षे परिवार का एक भी सदस्य नहीं होगा। अलग पार्टी में रहते हुए भी रानिल विक्रमसिंघे को श्रीलंका के राष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे और महिंदा राजपक्षे का करीबी बताया जाता है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यही कारण है कि उन्हें पीएम बनाया जा रहा है।
IMF ने कहा है कि वो इस देश की गतिविधियों पर निगाह बनाए हुए है और वहां पैदा हुए तनाव और जारी हिंसा को लेकर चिंतित है।दें कि IMF ने श्रीलंका के साथ अपनी अंतिम मीटिंग में इस देश को 300 से 600 मिलियन डॉलर मदद देने का भरोसा दिया था।इधर श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के गवर्नर नंदलाल वीरसिंघे ने बुधवार को देश के राजनीतिक दलों को चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि देश मेंराजनीतिक स्थिरता नहीं आता है तो वे अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। संकट से जूझ रहे श्रीलंका के राजनीतिक दलों के लिए गवर्नर की ये चेतावनी किसी अल्टीमेटम से कम नहीं है।
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