जानें कब है इस साल की आखिरी एकादशी, क्या है इसका महत्व

जानें कब है इस साल की आखिरी एकादशी, क्या है इसका महत्व

नई दिल्ली: एकादशी को सनातन धर्म में महत्वपूर्ण दिन के रूप में मनाया जाता है। हर माह में दो एकादशी होती है। इस साल की आखिरी एकादशी पौष माह में आएगी, इसे सफला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। सफला एकादशी के दिन व्रत करने से घर में सुख समृद्धि का वास होता है। इस दिन किसी गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन करवाना बहुत ही शुभ माना जाता है।

आइए जानते हैं सफला एकादशी की डेट, मुहूर्त और महत्व

जैसा की आप जानते है साल 2022 अपने आखिरी पड़ाव की ओर है। सालभर में कई व्रत-त्योहार आते हैं जिनमें से एक है एकादशी का व्रत। हर माह दोनों पक्षों की एकादशी तिथि बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। हर एकादशी व्रत का अलग महत्व होता है और उसका नाम भी कुछ अलग होता है। पौष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है यह एकादशी इस वर्ष पौष माह यानी दिसंबर में आएगी।इस दिन भगवान अच्युत और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। सफला एकादशी इस साल की आखिरी एकादशी है। इस बार सफला एकादशी 19 दिसंबर 2022 सोमवार को मनाई जाएगी। माना जाता है की इस एकादशी का व्रत करने से घर में सुख समृद्धि का वास होता है।

अभी मार्गशीर्ष माह चल रहा है जिसकी समाप्ति 8 दिसंबर 2022 को होगी। इसके बाद 9 दिसंबर 2022 से पौष माह शुरू हो जाएगा। पौष माह के कृष्ण पक्ष की तिथि को सफला एकादशी है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। कहते हैं की जो सच्चे मन और श्रद्धा ये उपवास करतेहै और श्रीहरि की उपासना करते है उन्हे मृत्यु के बाद बैकुंठ लोक की प्राप्ती होती है।

सफला एकादशी 2022 मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 19 दिसंबर 2022 सोमवार को सुबह 03 बजकर 32 मिनट पर शुरू होगी और एकादशी तिथि का समापन 20 दिसंबर 2022 मंगलवार को सुबह 02 बजकर 32 मिनट पर होगा। सफला एकादशी व्रत का पारण 20 दिसंबर 2022 को सुबह 08 बजकर 05 से सुबह 09 बजकर 16 मिनट तक किया जाएगा।

सफला एकादशी महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार सफला एकादशी सबका कल्याणकारी मानी जाती है। कहते हैं कि इस एकादशी व्रत के प्रभाव से मनचाही इच्छाओं की पूर्ती भी होती है, बता दे कि सफला एकादशी के दिन जो कार्य शुरु करते हैं वह पूर्ण रूप से सफल होता है। सफला एकादशी के दिन भगवान अच्युत जी के साथ श्रीहरि विष्णु की पूजा करने की मनायता है। मान्यताओं के अनुसार, सफला एकादशी की रात जागरण करने से सभी इच्छाएं पूरी होती है इस दिन श्रद्धालु बड़े स्तर पर पूजा, हवन और भंडारों आदि का आयोजन करते हैं। इस दिन किसी गरीब और ब्राह्मणों को भोजन करवाना बहुत ही शुभ और फलदायी माना गया है। सफला एकादशी के मंगलकारी व्रत को पूरे विधि विधान से करने से मनुष्य को मृत्यु के बाद बैकुंठ लोक की प्राप्ती होती है साथ ही उसके समस्त दुख और दोष खत्म हो जाते हैं।

सफला एकादशी का व्रत का पारण द्वादशी को किया जाता है, व्रत खोलने से पहले द्वादशी के दिन किसी जरूरमंद व्यक्ति या फिर ब्राह्मण को भोजन अवश्य करावाऐ। यथाशक्ति दान करें। मान्यता है इससे अश्वमेध यज्ञ करने का समान फल मिलता है।

सफला एकादशी कथा

प्राचीन काल में चंपावती नगर में राजा महिष्मत राज करते थे। राजा के 4 पुत्र थे, उनमें लुम्पक बड़ा दुष्ट और पापी था। वह पिता के धन को कुकर्मों में नष्ट करता रहता था। एक दिन दुःखी होकर राजा ने उसे देश निकाला दे दिया, लेकिन फिर भी उसकी लूटपाट की आदत नहीं छूटी। एक समय उसे 3 दिन तक भोजन नहीं मिला। इस दौरान वह भटकता हुआ एक साधु की कुटिया पर पहुंच गया। सौभाग्य से उस दिन सफला एकादशी थी। महात्मा ने उसका सत्कार किया और उसे भोजन दिया। महात्मा के इस व्यवहार से उसकी बुद्धि परिवर्तित हो गई। वह साधु के चरणों में गिर पड़ा साधु ने उसे अपना शिष्य बना लिया और धीरे-धीरे लुम्पक का चरित्र निर्मल हो गया। वह महात्मा की आज्ञा से एकादशी का व्रत रखने लगा। जब वह बिल्कुल बदल गया तो महात्मा ने उसके सामने अपना असली रूप प्रकट किया। महात्मा के वेश में स्वयं उसके पिता सामने खड़े थे। इसके बाद लुम्पक ने राज-काज संभालकर आदर्श प्रस्तुत किया और वह आजीवन सफला एकादशी का व्रत रखने लगा।

 

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