Rishi Kapoor dialogues : हमेशा याद रहेंगे ऋषि कपूर के ये यादगार डायलॉग्स

Rishi Kapoor dialogues :  हमेशा याद रहेंगे ऋषि कपूर के ये यादगार डायलॉग्स

नई दिल्ली :  बॉलीवुड के मशहूर अभिनेताओं में शूमार अभिनेता ऋषि कपूर आज इस-दुनिया को हमेशा-हमेशा  के लिए अलविदा कह गए है. ऋषि कपूर की उम्र 67 थी. अभिनेता  ऋषि कपूर एक आईकॉनिक स्टार  थे. जिन्होंने अपने तक के करियर में छाप छोड़ी है. उन्की हर फिल्म सुपरहिट रही है. वहीं उनके फिल्मों के डायलॉग्स इतने हिट है कि वो डायल़ग्स नौ-जवानो के मुह के अलावा आज-कल की जनरेशन के बच्चो के मुह से भी सुनने को मिलते है.

आइए पढ़ते है उन्की फिल्मों के कुछ यादगार डायलॉग्स

फिल्म ‘जब तक है जान का डायलॉग’ का डायलॉग- ‘हर इश्क का एक वक्त होता है,  वो वक्त हमारा नहीं था, पर इसका मतलब ये नही की वो इश्क नहीं था’.

फिल्म ‘ऑरंगजेब’का डायलॉग- ‘बादशाहत बेचारे को नही देखती’.

फिल्म ‘सनम रे’का डायलॉग- ‘हम  सैकड़ो जन्म लेते है, कभी पती-पत्नी बनकर, कभी प्रेमी बनकर,  तो कभी अनजाने बनकर, लेकिन मिलते जरूर है आखिर में, नहीं मिलेंगे तो कहानी खतम कैसे होगी’.

फिल्म ‘फना’का डायलॉग-‘शराब पीने दे मस्जीद में बैठकर घालिब,  या वो जगह दिखा दे जहां खुदा ना हो’.

फिल्म ‘दीवाना’का डायलॉग-  ‘मौहब्बत रीत-रीवाज़ नही मानती और ना ही वो लफ्ज़ो की मोहतज है’.

फिल्म ‘लैला मजनू’का डायलॉग-  ‘ना दुनिया के सितम याद, ना अपनी ही वफा याद, अब कुछ नही मुझको मौहब्बत के सिवा याद’.

फिल्म ‘प्रेम रोग’का डायलॉग-  सभी इंसान एक जैसे ही तो होते हैं.वही दो हाथ, दो पैर, आंखें, कान, चेहरा…सबके एक जैसे ही तो होते हैं…फिर क्यों कोई एक, सिर्फ एक ऐसा होता है जो इतना प्यारा लगने लगता है कि अगर उसके लिए जान भी देनी पड़े तो हंसते हुए दी भी जा सकती है.

फिल्म ‘डी डे’का डायलॉग-‘ये मुल्क तो मेरी मां है…और मुंबई शहर मेरी माशूका’

फिल्म ‘लव आजकल’ का डायलॉग-‘जाने से पहले, एक आखिरी बार मिलना क्यों जरूरी होता है?’

फिल्म ‘औरंगजेब’ का डायलॉग- ‘बेहिसाब पॉवर ये बेशुमार पैसा..इन दोनों में से मुझे एक तो चाहिए’

फिल्म ‘लैला मजनू’का डायलॉग- संगमरमर से तराशा हुआ ये शोख बदन. इतना दिलकश है कि जी चाहता है..सुर्ख होठों में तरखती है वो रंगीन शराब, जिसको पी पीके बहक जाने को जी चाहता है.नरम सीने में धड़कते हैं वो नाजुक तूफान, जिनकी लहरों में उतर जाने को जी चाहता है.तुमसे क्या रिश्ता है कब से है ये मालूम नहीं, लेकिन इस हुस्न पर मर जाने को जी चाहता है. हमसे बेहतर है ये पाजेब जो इस पैर में है, इसी पाजेब में ढल जाने को जी चाहता है.रखले कल के ले ये दूसरी पाजेब-ए-दिल, कल इसी में फिर आने को जी चाहता है.

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