Stubble Burning: पंजाब में धान की फसल कटाई के बाद पराली जलाने की पुरानी समस्या इस साल भी बनी हुई है। हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीनों में पराली जलाने से दिल्ली-NCR समेत उत्तर भारत की हवा को प्रदूषित हो जाती है। हालांकि, 15सितंबर से 18अक्टूबर तक कुल 241मामले दर्ज किए गए हैं, जो पिछले दो सालों की तुलना में काफी कम हैं। यह आंकड़े पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) और अन्य निगरानी एजेंसियों से प्राप्त हैं, जो सैटेलाइट डेटा के माध्यम से इन घटनाओं को ट्रैक करते हैं।
2025में पराली जलाने के आंकड़े
इस सीजन में पराली जलाने की घटनाएं धीरे-धीरे बढ़ रही हैं। 18अक्टूबर को ही 33नए मामले सामने आए, जो इस साल का एक दिन का सबसे ज्यादा आंकड़ा है। 15सितंबर से अब तक कुल मिलाकर, 241घटनाएं दर्ज हुई हैं। जिलों के लिहाज से देखें तो संगरूर जिला सबसे आगे है, जहां पिछले साल भी सबसे ज्यादा मामले थे। अन्य जिलों जैसे बठिंडा और फिरोजपुर में भी छिटपुट घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं।
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने बताया कि यह आंकड़ा पिछले सालों से काफी कम है। साल 2023में 15सितंबर से 18अक्टूबर की अवधि तक 1,407मामले दर्ज हुए थे। तो वहीं, 2024में यह संख्या 1,348थी। 2025में अब तक 241, जो 2023की तुलना में लगभग 83%की कमी दर्शाती है।
पराली जलाने का मुख्य कारण
पराली जलाने का मुख्य कारण किसानों की मजबूरी है। धान की कटाई के बाद गेहूं की बुआई के लिए खेत जल्दी साफ करने की आवश्यकता होती है, और पराली प्रबंधन के विकल्प जैसे सुपर सीडर मशीनें या बायो-डीकंपोजर अभी भी सभी किसानों तक नहीं पहुंचे हैं। हालांकि, सरकारी प्रयासों जैसे जुर्माना, जागरूकता अभियान और सब्सिडी वाले उपकरणों की वजह से मामलों में कमी आई है। फिर भी, दीपावली के बाद मामलों में बढ़ोतरी की आशंका है, क्योंकि तब फसल कटाई चरम पर होती है।
इस प्रथा का प्रभाव सीमा पार भी महसूस हो रहा है। पाकिस्तान के पंजाब में भी पराली जलाने की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो भारत की सीमा से सटे इलाकों में हवा की गुणवत्ता को और खराब कर रही हैं। दिल्ली में पहले से ही हवा 'खराब' श्रेणी में है और किसान संगठन सवाल उठा रहे हैं कि पराली जलाने से पहले ही प्रदूषण क्यों बढ़ रहा है कि क्या अन्य स्रोत जैसे वाहन उत्सर्जन या निर्माण कार्य जिम्मेदार हैं?
Leave a comment