Govardhan Puja: दिवाली के बाद की जाने वाली गोवर्धन पूजा हिन्दू धर्म में खास मानी जाती है। इस दिन गोवर्धन पर्वत के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज जी का स्वरूप माना जाता है। कहा जाता है कि दोनों ही एक-दूसरे का नाम धारण करते हैं। प्राचीन लोक मान्यता है कि गोवर्धन पूर्व जन्म में श्रीकृष्ण के ही भक्त थे और गोलोक धाम से आए थे। कहीं-कहीं उनकी कथा रामकथा से भी मिलता है।
गोवर्धन का क्या है रामकथा से नाता?
लोककथा में ऐसा कहा जाता है कि गोवर्धन पर्वत त्रेता युग की शुरुआत से ही भगवान का भक्त था। वह हिमालय की एक पर्वत श्रेणी में भगवान की अखंड-अविचल तपस्या में लीन था और इस बात का इंतजार कर रहा था कि किसी दिन भगवान के काम आ सकूंगा। फिर प्रभु ने रावण के अत्याचार का अंत करने के लिए राम अवतार लिया। एक समय आया कि सागर पार करने के लिए पुल बांधना था। उस समय हनुमान जी समेत कई वानर जो उड़ सकते थे वह पत्थरों के बड़े-बड़े टुकड़े ला रहे थे।
गोवर्धन पर्वत हुए उदास
इसी दौरान हनुमान जी हिमालय की पर्वत माला से गोवर्धन पर्वत को भी उठा ले आए, तब गोवर्धन पर्वत ने उनसे कहा कि हनुमान मुझे यहां से न ले चलो, मैं भगवान की तपस्या में लीन हूं और इंतजार कर रहा हूं कि वह मुझे दर्शन देने आएंगे। तब हनुमान जी ने कहा कि आपकी तपस्या सफल हुई है, मैं आपको भगवान के दर्शन के लिए ही ले चल रहा हूं।
ऐसा कहकर उन्होंने सागर पर पुल बांधने लाली बात कही। गोवर्धन पर्वत खुश हो गया और जल्दी से सागर तट पर पहुंचने के लिए तैयार हो गया, लेकिन हनुमान जी उन्हें नहीं ले जा पाए क्योंकि तब तक पुल बनकर तैयार हो चुका था। यह सुनकर गोवर्धन पर्वत बहुत उदास हो गया।
भगवान ने दिया गोवर्धन को वरदान
तब हनुमान जी ने उसकी निराशा देखकर कर कहा कि चिंता मत करो, तुम्हारी भक्ति भावना शुद्ध है। तुम प्रभु के लिए यहां तक आए हो और अब प्रभु खुद चलकर तुम तक आएंगे। कहते हैं कि हनुमानजी ने जब श्रीराम को यह बात बताई तब ही उन्होंने गोवर्धन पर्वत को मन ही मन वरदान दिया था कि मेरे अगले अवतार में मैं गोवर्धन पर्वत के ही नाम से जाना जाऊंगा। गोवर्धन मेरे बाल स्वरूप के लिए खेल का मैदान बनेगा। मेरी लीला में सहभागी होगा। मैं हर दिन उसके पास उससे मिलने जाऊंगा।
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