HISTORY OF 28 APRIL: एक तानाशाह का जन्म तो दूसरे की हत्या, एक साथ ढाई लाख लोगों का नरसंहार

HISTORY OF 28 APRIL: एक तानाशाह का जन्म तो दूसरे की हत्या, एक साथ ढाई लाख लोगों का नरसंहार

नई दिल्ली:  28 अप्रैल यानि आज का इतिहास शायद ही कोई जानता होगा, आज ही के दिन एक सद्दाम हुसैन नाम के तानाशाह का जन्म हुआ था,  वहीं दूसरी ओर 28 अप्रैल के ही दिन 1945 में मुसोलिनी की हत्या हुई थी।इराक के तानाशाह राष्ट्रपति रहे सद्दाम हुसैन से एक समय अमेरिकी भी भय खाते थे। सद्दाम की छवि ऐसी थी कि कुछ लोगों के लिए वह मसीहा था, जबकि दुनिया की बड़ी आबादी के लिए वह एक बर्बर तानाशाह था। सद्दाम का जन्म बगदाद के उत्तर में स्थित तिकरित के एक गांव में 28 अप्रैल 1937 को हुआ था। बगदाद में रहकर उसने कानून की पढ़ाई की। 1957 में महज 20 साल की उम्र में बाथ पार्टी की सदस्यता ली थी। ये पार्टी अरब राष्ट्रवाद का अभियान चला रही थी, जो आगे चलकर 1962 में इराक में हुए सैन्य विद्रोह की वजह बना, सद्दाम भी इस विद्रोह का हिस्सा थे।

1968 में इराक में एक और सैन्य विद्रोह हुआ जिसमें सद्दाम ने प्रमुख भूमिका निभाई थी,और जिसकी वजह से उसकी पार्टी सत्ता में आ गई थी। 31 साल की उम्र में सद्दाम ने जनरल अहमद हसन अल-बक्र के साथ मिलकर सत्ता पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद सद्दाम तेजी से आगे बढ़ा और 1979 में वह इराक का पांचवां राष्ट्रपति बन गया और जुलाई 1979 से अप्रैल 2003 तक इराक की सत्ता पर काबिज रहा।सद्दाम ने सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद सबसे पहले शियाओं व कुर्दों के खिलाफ अभियान चलाया। वह अमेरिका का भी विरोध करता था। माना जाता है कि सद्दाम की सिक्योरिटी फोर्सेज ने इराक में करीब ढाई लाख लोगों को मौत के घाट उतारा था। इतना ही नहीं, सद्दाम द्वारा ईरान और कुवैत पर हमलों की वजह से भी हजारों लोग मारे गए थे।

बताया जाता है कि सद्दाम अपने दुश्मनों को माफ नहीं करता था। उन्हें अगर अपनी हत्या की साजिश रचने वालों का पता चलता तो वो बदला लेने के लिए नरसंहार भी करवाते थे। और ये हुआ भी सद्दाम को जब पता चला तो उन्होंने इराक के शहर दुजैल में 1982 में नरसंहार करवाया और 148 शियाओं की हत्या करवा दी थी। हालांकि 1982 में दुजैल में 148 शियाओं के नरसंहार को लेकर ही एक इराकी अदालत ने 05 नवंबर 2006 को सद्दाम को दोषी ठहराया था और इसके बाद 30 दिसंबर 2006 में सद्दाम को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इसके अलावा बेनिटो मुसोलिनी का जन्म 29 जुलाई 1883 को इटली में हुआ था। उसके पिता सोशलिस्ट थे और माता टीचर थी। मुसोलिनी भी 18 साल की उम्र में टीचर बन गया, लेकिन सेना में भर्ती किए जाने के डर से स्विट्जरलैंड भाग गया। देश वापस लौटने के बाद वह पत्रकार बन गया और 1914 में पहले विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन और फ्रांस का साथ देने की पैरवी की। इस वजह से सोशलिस्ट पार्टी ने उसे निकाल दिया।

मार्च 1919 में नई राजनीतिक पार्टी ‘फासी-दि-कंबात्तिमेंती’ बनाई। और मुसोलिनी अपनी शानदार भाषण कला के बल पर लोगों को अपनी ओर करने में सफल रहा। अक्टूबर 1922 में 30 हजार लोगों के साथ उनसे तत्कालीन प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग के साथ रोम पर चढ़ाई कर दी। लेकिन सेना भी  उन्हें रोक नहीं सकी। और प्रधानमंत्री ने मुसोलिनी को सत्ता सौंपकर किसी तरह अपनी जान बचाई। अप्रैल 1945 में दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने को था। सोवियत संघ और पोलैंड की सेनाओं ने बर्लिन पर कब्जा कर लिया था। जर्मनी का साथ दे रहा मुसोलिनी दुश्मन सेनाओं के हाथ आने के डर से अपनी गर्लफ्रेंड क्लारेटा और बाकी 16 साथियों के साथ स्विट्जरलैंड भाग गया पर विद्रोहियों ने उसे पकड़ लिया और सभी 18 लोगों को गोली मार दी।

29 अप्रैल को सभी लाशों को इटली के मिलान शहर लाया गया। यहां इन शवों को उल्टा टांग दिया गया और उनके साथ जनता ने बहुत ही बर्बर व्यवहार किया। शवों को गोली मारी गई और उन पर पेशाब तक किया गया। माना जाता है कि मुसोलिनी का ये हश्र देखकर ही हिटलर को लगा कि उसके साथ भी जनता ऐसा ही व्यवहार करेगी। इस वजह से अगले ही दिन यानी 30 अप्रैल 1945 को हिटलर ने आत्महत्या कर ली थी।

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