
नई दिल्ली : आज पूरे देश में ईद का त्यौहार मनाया जा रहा है. ईद भाईचारे का त्यौहार है. इस खुशनुमा पर्व का हर इंसान को बेसब्री से इंतजार रहता है.रमजान के पवित्र महीने में 30 दिनों तक रोज़ा रखने के बाद अल्लाह अपने बंदे को ईनाम देते है. वहीं रमजान खत्म होने के बाद जो ईद मनाई जाती है, उसे ईद-उल-फितर कहा जाता है. ईद के दिन खास रौनक होती है. इस दिन मस्जिदों को सजाया जाता है, लोग नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे से गले लगकर ईद की मुबारकबाद देते हैं.
आपकों बता दें कि, पूरे देश में लॉकडाउन के चलते ये रौनक थोड़ी फीकी पड़ गई है. कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से ना तो लोग गले मिल सकेंगे और ना ही मस्जिद जाकर नमाज अदा कर पाएंगे. इस बार की ईद ज्यादातर लोग अपने घरों में ही मना रहे हैं. आइए जानते हैं कि आखिर ईद क्यों मनाई जाती है और इसकी शुरुआत कैसे हुई.पहला ईद उल-फितर पैगम्बर मुहम्मद ने जंग-ए-बदर के बाद मनाया था. ईद उल-फ़ितर शव्वल इस्लामी कैलंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाया जाता है. इस्लामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चांद के दिखने पर शुरू होता है.
वहीं इस ईद में मुसलमान 30 दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं. रोज़े खत्म की खुशी के अलावा, इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी.ईद प्यार और सद्भावना का त्योहार है. ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं, और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है.
साथ ही ये भी बता दें कि, ईद-उल-फितर' दरअसल दो शब्द हैं. 'ईद' और 'फितर'. असल में 'ईद' के साथ 'फितर' को जोड़े जाने का एक खास मकसद है. वह मकसद है रमजान में जरूरी की गई रुकावटों को खत्म करने का ऐलान. साथ ही छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सबकी ईद हो जाना. यह नहीं कि पैसे वालों ने, साधन-संपन्न लोगों ने रंगारंग, तड़क-भड़क के साथ त्योहार मना लिया व गरीब-गुरबा मुंह देखते रह गए.शब्द 'फितर' के मायने चीरने, चाक करने के हैं और ईद-उल-फितर उन तमाम रुकावटों को भी चाक कर देती है, जो रमजान में लगा दी गई थीं. जैसे रमजान में दिन के समय खाना-पीना व अन्य कई बातों से रोक दिया जाता है.
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