Sudha Murthy: कहते हैं कि जब मन में विश्वास हो और कुछ करने की क्षमता हो तो बड़े जोखिम उठाने ही पड़ते हैं। लेकिन यह ख़तरा तब और बढ़ जाता है जब आप दूसरों पर भरोसा करते हैं। वो भी उस वक्त जब आपको पता हो कि सामने वाला अपनी पिछली कोशिशों में फेल हो चुका है। सुधा मूर्ति उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने ऐसा जोखिम उठाया है। उन्होंने ये दांव किसी और पर नहीं बल्कि अपने पति पर ही खेला था। जी हां, यह कहानी उस समय की है जब नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति मोटी तनख्वाह पर थे। नारायण मूर्ति अपना खुद का व्यवसाय शुरू करना चाहते थे। उस वक्त सुधा मूर्ति ने अपनी बचत से 10 हजार रुपये दिए थे। उस वक्त उनकी जेब में सिर्फ 250 रुपये बचे थे। आइए आपको भी बताते हैं कि सुधा मूर्ति को यह घटना दोबारा कैसे याद आई।
जब कि लिया था सबसे बड़ा रिस्क
हाल ही में राज्यसभा सांसद बनीं सुधा मूर्ति ने शुक्रवार को उस समय को याद किया जब उन्होंने अपने पति एनआर नारायण मूर्ति को एक आईटी कंपनी शुरू करने के लिए शुरुआती पूंजी के रूप में 10,000 रुपये दिए थे। हालाँकि, सुधा मूर्ति ने कहा कि उन्होंने अपनी बचत से 250 रुपये रखने का फैसला किया है क्योंकि वह नारायण मूर्ति के पिछले असफल उद्यम के कारण जोखिम ले रही थीं। नारायण मूर्ति ने इसी पैसे से दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस की नींव रखी थी।
सुधा मूर्ति की दलील
सुधा मूर्ति ने बताया कि 1981 में, जब उनके पति ने उनसे कहा कि वह एक सॉफ्टवेयर कंपनी शुरू करना चाहते हैं, तो उन्होंने तर्क दिया कि उन दोनों के पास पहले से ही अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियां थीं। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि नारायण मूर्ति ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वह उनकी मंजूरी के बिना आगे नहीं बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि मेरे पास बचत के तौर पर 10,250 रुपये थे। मैंने अपने लिए 250 रुपये बचाए और बाकी उसे दे दिए। वह अपने पिछले उद्यम सॉफ़्ट्रोनिक्स में असफल रहा था, इसलिए मैंने जोखिम उठाया।
इंफोसिस के बाद बहुत बदलाव आया
भारतीय आईटी सेवाओं की दिग्गज कंपनी के शुरुआती दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि मूर्ति ने उन्हें अगले तीन वर्षों के लिए कठिन सफर के लिए तैयार रहने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने इंफोसिस की शुरुआत की तो मेरे जीवन में बहुत बदलाव आया, यह एक जिम्मेदारी थी, एक प्रतिबद्धता थी। मूर्ति ने कहा कि कंपनी बनाना कोई मजाक नहीं है, इसके लिए काफी त्याग करना पड़ता है। राज्यसभा सांसद के रूप में शपथ लेने पर उन्होंने कहा कि 73 साल की उम्र में यह एक नया अध्याय है। लेकिन सीखने में उम्र कोई बाधा नहीं है।
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