
गुरुदत्त की असामयिक मौत के बाद निर्माता निर्देशक के.आसिफ ने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म लव ऐंड गॉड का निर्माण बंद कर दिया और अपनी नई फिल्म सस्ता खून मंहगा पानी के निर्माण में जुट गए। राजस्थान के खुबसूरत नगर जोधपुर में हो रही फिल्म की शूटिंग के दौरान एक नया कलाकार फिल्म में अपनी बारी आने का इंतजार करता रहा। इसी तरह लगभग दस दिन बीत गए और उसे काम करने का अवसर नहीं मिला। बाद में के.आसिफ ने उसे वापस मुंबई लौट जाने को कहा। यह सुनकर उस नए लड़के की आंखों में आंसू आ गए। कुछ दिन बाद के.आसिफ ने सस्ता खून और मंहगा पानी बंद कर दी और एक बार फिर लव ऐंड गॉड बनाने की घोषणा की।
गुरूदत्त की मौत के बाद वह अपनी फिल्म के लिए एक ऐसे अभिनेता की तलाश में थे, जिसकी आंखे भी रूपहले पर्दे पर बोलती हो और वह अभिनेता उन्हें मिल चुका था। यह अभिनेता वही लड़का था जिसे के.आसिफ ने अपनी फिल्म सस्ता खून मंहगा पानी के शूटिंग के दौरान मुंबई लौट जाने को कहा था। बाद में यही कलाकार फिल्म इंडस्ट्री में संजीव कुमार के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अपने दमदार अभिनय से हिंदी सिनेमा जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले संजीव कुमार को अपने करियर के शुरुआती दिनों में वह दिन भी देखना पड़ा जब उन्हें फिल्मों में नायक के रूप में काम करने का अवसर नहीं मिलता था। मुंबई में नौ जुलाई 1938 को एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में जन्मे संजीव कुमार बचपन से ही फिल्मों में नायक बनने का सपना देखा करते थे। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन द्वारा निर्मित फिल्म आरती के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास नहीं हो सके।
संजीव कुमार को सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में उन्हें 1965 में प्रदर्शित फिल्म निशान में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1960 से 1968 तक संजीव कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फिल्म हम हिंदुस्तानी के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उन्हें स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने स्मगलर पति-पत्नी, हुस्न और इश्क, बादल, नौनिहाल और गुनहगार जैसी कई बी ग्रेड फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।
वर्ष 1968 मे प्रदर्शित फिल्म शिकार में संजीव कुमार पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिये। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेन्द्र पर केन्द्रित थी फिर भी संजीव अपने अभिनय की छाप छोड़ने में वह कामयाब रहे। इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला। वर्ष 1970 मे प्रदर्शित फिल्म खिलौना की जबरदस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार ने नायक के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1970 में ही प्रदर्शित फिल्म \'दस्तक\' में लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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